मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

तप ही मार्ग की खोज भाग - 1

जब तक साधक सर्वथा प्रकृतिमय जीवन ना जिए तब तक साधना मार्ग में सफलता कल्पना मात्र होती हैं! कठोर साधनाओं के लिए अति अनिवार्य है कि हम अति वैराग्य भाव से निर्लेप होकर प्रकृति के मध्य विचरण करे; इसीलिए योगी साधक बहुत कम वस्त्र धारण कर ऐसे स्थानों पर चढ़कर साधनाएं करते हैं जहां साधारण जीव जंतु नही जा पाते! ऐसे दुष्कर और क्लिष्ट स्थानों को साधना एवं योग हेतु अति उत्तम कहा गया है! साधनकाल में कम से कम वस्त्र पहने जाते हैं क्योंकि शरीर तादात्म्य स्थापित करता है

तंत्र ज्योतिष


तंत्र ज्योतिष समस्त जीवो पर.. पशु पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होता है, इसलिए हमें तंत्र ज्योतिष को समझना होगा। लेकिन गहरी बात... कि हमारा भविष्य पूरी तरह से निश्चित नहीं इसलिए बिल्कुल सटीक भविष्यवाणी कोई कभी ना कर पाएगा! भगवान राम का राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला गया था, उसी मुहूर्त में वनवास हो गया! इसका कारण है सटीक भविष्यवाणी इसलिए भी नहीं की जा सकती क्योंकि भविष्य आधा कोरा पन्ना है ! जिसमें कुछ लकीरें है, हम बस इन लकीरों को गिन कर बता सकते हैं! 

जैसे एक उदाहरण से हम समझे कि, हम यदि दो टांगो पर खड़े हो जाए और कोई कहे कि हम उन दोनो में से एक टांग को मोड़ ले तो हम उसे ऊपर की तरफ मोड़ सकते हैं; थोड़ी कठिनाई होगी, लेकिन फिर कोई कहे कि अब दोनो को मोड़ लो, ये तो संभव नहीं! इसका गहरा कारण है! सहज सी बात है कि हम गिर जाएंगे, क्योंकि 50% तो हम अपने ऊपर निर्भर है कि एक टांग स्वेच्छा से मोड़ सकते हैं लेकिन दूसरी नहीं मोड़ सकते; क्योंकि वो दूसरी प्रकृति पर, परिवेश पर अथवा परमात्मा पर निर्भर करती हैं!

तो जो आपके कर्म है और जो कुछ एक आपका प्रारब्ध है उसके आधार पर कुछ हद तक आपके भविष्य को देखा जा सकता है, यही वास्तविक ज्योतिष है; और ज्योतिष का कार्य कल क्या होगा यह बताना नहीं, आपको कल क्या करना चाहिए यह बताना है ताकि आपका जीवन खुशहाल हो सके ! तो आप अपना कर देखिए इस तंत्र ज्योतिष को, कितना अलौकिक, कितना विचित्र है यह तंत्र ज्योतिष!
- कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

धर्ममय भारत


हमारे राष्ट्र की जो सबसे बड़ी पूंजी है वह न तो हीरे है ना तो मोती है, न ही अस्त्र-शस्त्र है और ना ही कोई युद्ध विद्या या कौशल है। हमारे राष्ट्र की जो सबसे बड़ी पूंजी है वो धर्म है! हमने धर्म से ऊपर कभी किसी चीज को रखा नहीं, हमारे लिए धर्म के अतिरिक्त कोई सत्ता है ही नहीं और धर्म ही है जो धारण करने योग्य हैं।
- ईशपुत्र

साधना मार्ग : हिमालय में तप भाग - 5

 

अपने अनुभव की बात कहूं तो मेरी दृष्टि में साधना पथ पर ये जो पहली प्रणाली है तप की ये एक प्रयोग है, अपने साथ प्रयोग। जब तक हम स्वयं स्वयं पर प्रयोग न करे तब तक उस मार्ग को जानना अत्यंत क्लिष्ट है; शब्दों में धर्म को कहना, अध्यात्म को कहना एक अलग बात है, उसे अनुभव पर धारण करना बिल्कुल सिक्के का दूसरा पहलू।


सूर्य का प्रकाश धीरे धीरे योगी के शरीर के माध्यम से भीतर दिव्य अमृत पैदा करता चला जाता है और जब साधक का अभ्यास बढ़ता चला जाए तो वो जीव जंतुओं, वृक्षों तथा भोजन पर निर्भर नहीं रहता! उसकी दैहिक आवश्यकताएं सूर्य के प्रकाश से पूरी होने लगती है।


अब वो प्रकृति के बीच प्रकृति का मित्र हैं, प्रकृति को जनानेवाला है, अब उसकी साधनाएं फलीभूत हो रही है, अब वो भीतर एक गहरे मौन में खो जाता है, भीतर की शक्तियों के साथ जुड़ जाता है, अब एक नया अवतरण होता है, भीतर एक नए साधक की संरचना होती है। वो प्रकाश, वो मौन, वो दिव्यता साधक को परिवर्तित कर देती है। इसी परिवर्तन को साधना मार्ग कहा गया; लेकिन ध्यान रहे शब्द है 'साधना मार्ग'...'साधना' नहीं! हम इस प्रणाली को साधना अवश्य कह रहे हैं लेकिन ये साधना का अभ्यास मात्र है, क्योंकि परम साधनाएं क्लिष्ट है उन्हें करने के लिए यही पथ हमें तैयार करवाता है; इसीलिए साधना पथ का ज्ञान लेना उसपर स्वयं आगे बढ़ते जाना परम साधना है, भले ही ये छोटे छोटे बिंदु, ये छोटे छोटे प्रयास बहुत गौण लगते हैं लेकिन हर मजबूत घर की तरह ये समस्त बिंदु उस घर के आधार पृष्ठ है। आधार स्वरूप इन बिंदुओं को भली प्रकार साधक को जीवन में उतारना चाहिए इसका निरंतर और सतत अभ्यास साधकों को परम तत्त्ववेत्ता बना देता है! तदनंतर गुरु आश्रम में रहकर लगातार साधना मार्ग के तत्वों को जानना चाहिए, भीतर उठ रहे संदेहों को गुरु चरणों में निवेदित करना है। किसी भी प्रकार का कष्ट अथवा पीड़ा होने पर भी यथाशीघ्र गुरु चरणों में निवेदित करें। तब परम साधना का मार्ग दुर्लभ नहीं रह जाता और हम परम साधक बन उस महान रहस्यमयी शक्ति को जान जाते हैं जो आदिकाल से दुर्लभ मानी गई है।

- ईशपुत्र