बुधवार, 31 जुलाई 2019

षोडशस्वरीय अष्ट सिद्धि मंत्र

'कौलान्तक पीठ हिमालय' प्रस्तुत करता है 'षोडशस्वरीय अष्ट सिद्धि मंत्र'। प्रस्तुत मंत्र की साधना व जाप और श्रवण से अष्टसिद्धियाँ योगियों को प्राप्त होती है। ये मंत्र दो भागों में विभक्त होता है जिसे शिव-शक्ति क्रम कहते हैं। अष्टसिद्धियों का ये मंत्र भैरव-भैरवियों को उच्चता प्रदान करेगा। इसी कामना के साथ-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
         'षोडशस्वरीय अष्ट सिद्धि मंत्र'
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ अणिमा सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ महिमा सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लघिमा सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ प्राप्ति सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ र्इषिता सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ वशित्व सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ प्राकाम्य सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ कामवसायिता सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं

ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः अणिमा सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः महिमा सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः लघिमा सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः प्राप्ति सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः र्इषिता सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः वशित्व सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः प्राकाम्य सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं
ॐ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः कामवसायिता सिद्धे हिरण्यगर्भिणी हुं 


रविवार, 28 जुलाई 2019

ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ के शुभ विचार - 5

"इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि तुम कितने विख्यात हो......लेकिन इस बात से जरूर अंतर पड़ता है कि तुम्हारा अपने जीवन के प्रति नजरिया क्या है? अपने आप में कुछ हो जाने पर फिर संसार के प्रमाणीकरण की जरूरत ठीक वैसे ही नहीं रहती......जैसे कि हीरे को कोयले बीच भी कालिख का भय और अपनी श्रेष्ठता की चिंता नहीं होती"-'कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज'-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय

मंगलवार, 23 जुलाई 2019

विरह क्या है ?

"विरह सौभाग्य है, श्रेष्ठता है, पवित्रता है....विरह तो साक्षात् वरदान ही है...........होठों को थरथराहट आँखों को सजलता देता है.........सिसकारियों के बीच कविता उठने लगती हैं......विछोह के बीच मिलन के गीत उठने लगते हैं.....आंसुओं की झिलमिलाहट प्रिय दर्शन में सहयोगी हैं....ये एक ऐसा सौभाग्य है कि तुम्हें........मीरा.......सूर.......कबीर.......की श्रेणी में खड़ा कर पूर्णता प्रदान करेगा, विरह दुःख नहीं है....विरह शत्रु भी नहीं..."-'कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज"-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय.

शनिवार, 20 जुलाई 2019

कुगति माता वास्तव में कृतिकाएँ नाम की देवियाँ हैं

हिमाचल प्रदेश में एक जिला है-लाहोल स्पीती.....इसी जिले के एक गाव जाहलमा इस गाव से कुछ आगे जा कर चंद्रभागा नदी पार कर दो दिनों का पैदल सफर कर बहुत ही ऊँचे पर्वत पर एक छोटा सा मंदिर है.........इस पर्वत का नाम है कुगति जोत.....और माता को कुगति माता कहा जाता है.......इस मंदिर तक पहुंचना एक चुनौती है........सारे रास्तो में पहाड़ों से टूट-टूट कर पत्थर गिरते रहते हैं......ओक्सीजन की कमी के कारण एक एक कदम मुश्किल से ही रखा जाता है......रास्ते बर्फ से भरे हुए थहैं.......बर्फ पर ही चल कर इस मंदिर तक पहुंचना पड़ता है....गलेशियर को पार करना बहुत मुश्किल है.....क्योंकि गलेशियारों में दरारे पड़ी होती हैं......जो 15 -20 फुट गहरी होती है, मुश्किल से उनको पार कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं.......खाने पीने का सामान पीठ पर उठा कर ले जाना पड़ता है......वहां का तापमान जमा देने वाला है....इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती......चारों और बहुत ऊँचाइयों के पर्वत है.....इस मंदिर में पूजा करना भी बहुत ही मुश्किल है....तेज़ हवाएं खड़ा ही नहीं होने देती....पर मातारानी की कृपा से वहां तक जरूर पहुंचा जा सकता है....कहा जाता है कि कुगति माता वास्तव में कृतिकाएँ नाम की देवियाँ हैं जो आकाश में रहती है....भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय जी को इन्ही माताओं ने पाल पोस कर बड़ा किया था.....इसी पर्वत पर पहली बार माताएं भगवान कार्तिकेय को ले कर शिव भगवान के पास आई थी....इसी स्थान पर उन्होंने कार्तिकेय को शिव को सौंपा ..........अच्छे लालन पालन के कारण माँ पार्वती प्रस्सन हुई.....उनहोंने कृतिकाओं को अष्टभुज दुर्गा के रूप में दर्शन दिए.....और कहा ये स्थान पृथ्वी पर सिद्धियाँ देने वाला होगा .......जो भी भक्त यहाँ लाल बस्त्र अर्पित करेगा....वह दुक्खों से मुक्त हो समस्त मनोवांछित पायेगा....तथा कृतिकाओ की रक्षा के लिए शेष नाग को कुछ दूरी पर स्थापित किया.......यही पर्वत पर शिव रहते है.......साप जैसा एक पहाड़ नजदीक ही है.....रास्ते में पर्वत पर नंदी बैठे हुए है जो पत्थर गिरा कर लोगो का सदा रास्ता रोकते हैं.......ताकि कोई दुष्ट आत्मा सीधे ही प्रवेश न कर जाए.....इसी स्थान पर तबसे माता पार्वती और कृतिकाओ की पूजा होती है.....माता पार्वती हिमाचल की पुत्री है...यह उनकी लीला स्थली की गाथा है......                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ

गुरुवार, 11 जुलाई 2019

ईश्वर से प्रार्थना

"ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ उन सब साधकों और भक्तों के लिए जो सीधे-साधे हैं...छल-प्रपंच से कोसों दूर हैं के ईश्वर उनको जीवन की यात्रा के मूल उद्देश्य तक पहुँचने में सहायक हो...क्योंकि हम में से किसी में इतना साहस नहीं के अपने सामर्थ्य और बल से आपकी ओर आ सकें....आपको समझ सकें...आपको पा सकें."-'कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज'-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय.

सोमवार, 1 जुलाई 2019

Kaulantak Nath and the title of Baba

Based on Kaula Siddha Dharma, Kaulantak Nath is not a baba or is considered to be a baba . A baba is socially misinterpreted word to denote some certain spiritual sect which is not related to Kaula Siddha tradition in whatsoever way possible. Baba itself is a word used in derogation by the society based on the constant attack of the Medias. Baba originally means fatherly figure but the modern day interpretation has deviated from its original meaning and used in a very derogatory way. Kaulantak Nath even in primitive era was not known by the title of baba nor in the modern day. Kaulantak Nath means lord of Kaulas and Kaulas are not babas. Kaulas are rajasic Shaivas. Therefore, Kaulantak Nath is never to be interpreted as a baba.