'करवा चौथ' के पावन अवसर पर उन सभी भैरव-भैरवियों हेतु मंत्र प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने अपने भैरव या भैरवी हेतु पवित्र व्रत धारण किया है। दिन भर इस मंत्र का मानसिक जाप करना श्रेष्ठ है व इसके प्रभाव से पति-पत्नी की लम्बी आयु के साथ ही धन-धान्य व दाम्पत्य सुख आदि की भी प्राप्ति होती है। ब्रत के दिन शिव-पार्वती का ध्यान व गुरु वंदना सहित अपने कुल देवी-देवताओं की स्तुति व पूजन भी करना चाहिए। यदि भैरव-भैरावियाँ कुंवारे हैं तो भी सुन्दर पति-पत्नी की कामना हेतु ब्रत धारण करने का विधान है। यदि आपका विवाह नहीं हुआ है तो आप अपने प्रेमी या प्रेमिका हेतु भी व्रत धारण कर सकते हैं। 'कौलान्तक संप्रदाय' में जिन भैरवियों या भैरवों की पत्नी अथवा पति इस लोक में नहीं हैं वो भैरव-भैरवी अपने गुरु या इष्ट के निम्मित भी इस व्रत को धारण कर सकते हैं। व्रत चन्द्रमा के दर्शन तक स्थित रहता है। किन्तु बिना मंत्र जाप 'कौलान्तक संप्रदाय' व्रत को महत्त्व नहीं देता। ये व्रत एक गोपनीय 'तांत्रिक साधना' है। इस व्रत की बहुत सी मनघडंत और व्यर्थ की कथाएं पुस्तक बाजारों में उपलब्ध है। जिस पर 'कौलान्तक पीठ' विश्वास नहीं करता। क्योंकि इस व्रत के नियम कथा आदि हमारी परम्परा में बिलकुल भिन्न हैं। अत: आप मंत्र पूर्वक व्रत को संपन्न करें। करवा चौथ के पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएं और हाँ जाते-जाते ये बताना जरुरी है की भारत के कुछ मनहूस मीडिया घराने जो की हमेशा इस व्रत विपरीत कुछ न कुछ बताते रहते हैं हम उनको 'मलेच्छ संगठन' करार देते हैं व हिन्दू धर्म विरोधी घोषित कर उनका व उनके कर्मचारियों का मुँह काला करते हैं-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
ॐ ह्रौं श्रीं ऐं ह्रीं सर्वसौभाग्य चक्र स्वामिन्यै नमः
'करवा चौथ' के सम्बन्ध में एक और बात की क्या पुरुषों को व्रत रखना चाहिए क्योंकि धर्म ग्रंथों व कथाओं में ऐसा कोई विवरण नहीं मिलता? इसका उत्तर ये है की करवा चौथ एक खगोलीय मुहूर्त है जिसका प्रयोग स्त्री व पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं। आम जान व्रत के साधनात्मक पक्ष को नहीं जानते इस कारण व्रत कर महिलाये इसे पूर्ण समझ लेती है। हाँ ये जरूर है की भक्ति और श्रद्धा में शक्ति होती है तो व्रत फलीभूत हो जाता है। लेकिन इस पर्व विशेष में साधना आवश्यक होती है। साधना से ही सती स्त्रियां बल प्राप्त कर उसका बड़ा भाग पति को सौंपती थी जो आज भी संभव है साधना द्वारा। जो साधक काल ज्ञान के ज्ञाता हैं वो जानने हैं की इस काल खंड में की गई साधना से सर्व सौभाग्य आता है। इस कारण हिमालय के सिद्धों नें व्रत की परम्परा को बढ़ावा दिया। 'कौलान्तक संप्रदाय' में बहुत से वीर योद्धाओं का विवरण है व साथ ही 'देवराज इंद्रा द्वारा अपनी पत्नी शची' के व्रत काल में व्रत धारण करने की कथा का भी उल्लेख है। महाकैलाश पर देवी पार्वती के व्रतकाल में शिव भी व्रती होते हैं। इस प्रकार ये सिद्ध होता है की व्रत केवल स्त्री-पुरुष के भेद से नहीं अपितु ज्योतिषीय भेद से चलता है। हाँ पुरुषों के लिए ये व्रत रखना जटिल है उनके स्वभाव के कारण क्योंकि इस व्रत के नियमों में से कुछ अति आवश्यक है जिनका पालन कभी-कभी पुरुषों से नहीं हो पाता इस कारण अधिकांश पुरुष इससे दूर रहते है। पर जो स्त्री अपने पुरुष से अमर्यादित सम्भाषण करती हो। पुरुष से श्रेष्ठता चाहती हो, पुरुष के तर्कों को तर्कों से आंकती हो, पुरुष को प्रथम स्थान न देती हो ऐसी स्त्री द्वारा किया गया व्रत केवल ढोंग होता है व निष्फल ही रहता है। तो ऐसी स्त्री को भी ब्रत नहीं करना चाहिए। जो पुरुष पराई औरतों पर आसक्त है अपनी स्त्री में देवी का अंश नहीं देखता उसे न तो व्रत का अधिकार है ना ही अपनी अर्धांगिनी से पूजा ग्रहण का अधिकार। इस प्रकार बहुत से नियम और साधना मत 'करवा चौथ' से जुड़े हैं। जिनका भैरव-भैरवियों को अध्ययन कर व्रत साधना में उतरना चाहिए। ये व्रत पौराणिक व तांत्रिक दोनों मतों द्वारा प्रतिपादित है। शेष ज्ञान अपने श्री गुरु से ग्रहण करें। इस व्रत की रक्षा धर्मावलम्बियों का कार्य है। क्योंकि पतिव्रत को नष्ट करने का कार्य मलेच्छ करेंगे ऐसा पूर्व भविष्यवाणियों से सिद्ध होता है। कलियुग में कुलटा स्त्रियां व मलेच्छा पुरष तथा उनके विविध संगठन इस कार्य में जुट जाएंगे। क्योंकि अकारण भी सतित्व से भयभीत रहते मलेच्छों के ह्रदय को ऐसे पर्वों से अपार दुःख पहुँचता है तो वे षड्यंत्र व कृत्रिम बौद्धिक तर्कों व कुतर्कों द्वारा इन व्रतों की महिमा को खंडित करने का प्रयास करते है-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
।। ॐ ह्रौं श्रीं ऐं ह्रीं सर्वसौभाग्य चक्र स्वामिन्यै नमः ।।