॥ ॐ महाकालाय विकर्तनाय मायाधराय नमो नमः॥
हिमालय की दिव्य भूमि में कुल्लूत नाम का एक प्राचीन देश.... जहाँ मां भगवती पाराम्बा का निवास माना गया तथा शिव की तंत्रमयी तपोभूमि मानी जाती है... में एक स्थान ऐसा भी था , जिसे कौलान्तक पीठ कहा जाता था। इस पीठ के पर्यायवाची नाम क्रमश: कुलांतर पीठ, कुलान्तक पीठ, कोलांतर पीठ, कौलांतर पीठ हैं। इस पीठ की स्थापना स्वयं शिव द्वारा की गयी मणि जाती है। क्योंकि माँ सती से सम्बन्धित होने के कारण भगवान शिव ने स्वयं हिमालय के एक भाग में इस पीठ की स्थापना की थी। इस पीठ के प्रथम पीठाधीश भगवान लोमेश ऋषि को माना जाता है। उसके बाद क्रमश: अनेक दिव्य ऋषियों ने इस पीठ को संभाला। कलयुग में वर्ष २००२ में हिमालय की दिव्य ऋषि परम्परा के द्योतक प्रातः स्मरणीय पूज्य पाद श्री सिद्धसिद्धांत नाथ जी महाराज ने इस पीठ पर श्रद्धेय महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज को पीठाधीश के रूप में प्रतिष्ठित किया गया व पहली बार महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने हिमालय की प्राचीन पीठ व भारत की सबसे प्राचीन पीठ कौलान्तक पीठ को पुन: विश्व भर में प्रसारित व प्रतिष्ठित करने का दायित्व स्वीकार किया। कौलान्तक पीठ तप , साधनाओं और अध्यात्म ज्ञान का भंडार है। यह एक मात्र ऐसा पीठ है जिसके साधकों को ६४ कला संपन्न होने का गौरव प्राप्त है। सांकेतिक रूप से शास्त्रों में इसी पीठ को ज्ञान गंज, सिद्धाश्रम व महा हिमालय कहा गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से हिमाचल के कुल्लू शहर के मध्य से बहती विपाशा नदी जिसे वर्तमान में व्यास नदी भी कहा जाता है के साथ लगता पूर्वी व उत्तरी क्षेत्र तिब्बत के अंतिम पठार तक कौलान्तक पीठ कहलाता है व नदी के दक्षिणीपश्चिमी भाग को जालंधर पीठ माना गया है जिसकी स्थापना काक भुशुण्डी जी महाराज ने की थी। रेशमी मार्ग पर आने वाले दुसरे देश के आक्रमणकारियों ने दोनों पीठों को नष्ट कर दिया था। किन्तु कौलान्तक पीठ को उस समय के पीठाधीश ज्ञानेंद्र नाथ जी महाराज ने पुनर्प्रतिष्ठित किया तथा यह भी कथा आती है की उस समय नव नाथ और चौरासी सिद्ध हिमालय भ्रमण करते हुए इस पीठ पर पहुंचे तथा उन्होंने इस पीठ के जीर्णोद्धार में सहायता की। इसी कारण इस पीठ पर नाथ सम्प्रदाय और सिद्ध संप्रदाय का भी अधिकार हो गया जो मत्स्येन्द्र नाथ जी महाराज व गुरु गोरख नाथ जी महाराज द्वारा स्थापित है। कौलान्तक पीठ में साधक अलग- अलग देशों, अलग - अलग द्वीपों से ज्ञान व विद्या प्राप्त करने आते थे। इस पीठ का पीठाधीश्वर बनने हेतु योग, ज्योतिष, तंत्र, वास्तु, कर्म कांड , आयुर्वेद सहित अनेक विषयों का ज्ञान होना अनिवार्य है व हिमालय के उच्चतम क्षेत्रों में हट साधनाओं को संपन्न करना होता है तथा गुरु शिष्य परम्परा के अनुकूल ही यह पीठ प्राप्त होती है। किन्तु खेद का विषय यह रहा की लगभग २००० सालों से कौलान्तक पीठ का परम्परा हिमालय के क्षेत्रों में आंशिक रूप से जीवित रही लेकिन उसी कल से जालंधर पीठ सहित अन्य चार दिव्य पीठें लुप्त हो गयी। संभवतः इसी आशय को जगद्गुरु भगवान शंकराचार्य जी ने समझा व हिमालय की इन लुप्त पीठों के बराबर की चार पीठों की स्थापना की। किन्तु सकल जगत के लिए यह प्रसन्नता का विषय है के महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने सबसे प्राचीन कौलान्तक पीठ की पुनर्स्थापना का बीड़ा उठाया है। महायोगी स्वयं इस परम्परा से जुड़े हैं व नाथ परम्परा से भी दीक्षित हैं।
हिमालय की कठोर हठ सधानाओं से हो कर गुजरे है व लुप्तप्राय: हो चुकी टन्करी लिपि व भूतलिपि आदि का ज्ञान रखते हैं । अध्यात्म की सभी विधाओं में निपुण हैं व बाल्यावस्था से साधनारत हैं ..... हिमालय के अनेक क्षेत्रों में साधनों एवं तप क्रियाओं को संपन्न कर चुके हैं। ऐसे में आपका इस पीठ से जुड़ना मानव जीवन का गौरव है। आपके द्वारा यह पीठ पुनर्प्रतिष्ठित हो पायेगी तथा आदिकाल की तरह ही अनेक राष्ट्रों व द्वीपों के साधकों को दिव्य ज्ञान प्रदान कर पाएगी तथा वास्तविक साधनात्मक जीवन का पुनर्स्थापन हो पायेगा। कौलान्तक पीठ से जुड़ कर आपने अपना अमूल्य सहयोग इस पीठ को प्रदान किया हैं। अतः पीट पूरण निष्ठां से आपको आध्यात्मिक व भौतिक उन्नति के मध्यमो से अवगत करवाएगा। कौलान्तक पीठ का कार्य किसी प्रदेश अथवा देश का कार्य न हो कर एक वैश्विक कार्य है। अतः आप गणमान्य सदस्यों की राय अपेक्षित है। कौलान्तक पीठ का कार्य पूरी तरह पारदर्शी व धर्मनिष्ट है। कौलान्तक पीठ के इस वैश्विक महा यज्ञ में आपका सहयोग एह आहुति की तरह अमूल्य व गौरवमयी रहेगा। अतः सभी दिव्य पथ के साधकों से अनुरोध है की वे कौलान्तक पीठ की स्थापना में अपना सहयोग दें ..........और हिमालय के दिव्य ज्ञान से स्वयं जुड़ें तथा विश्व को जोड़ें।
सोमवार, 30 जुलाई 2018
शुक्रवार, 27 जुलाई 2018
ग्रहण के 21 सिद्ध मन्त्र
सूर्य ग्रहण ठीक आठ घंटे पहले से ही पृथ्वी पर अमृत तत्व की बौछार करने लगता है और ठीक इसी तरह 6 घंटे पूर्व चंद्र ग्रहण | और ये बाद तक भी रहता है | जैसे - 8 घंटे बाद तक सूर्य ग्रहण रहता है ग्रहण लगने के बाद | और चंद्र ग्रहण का प्रभाव भी 6 घंटे बाद तक रहता है | सूर्य ग्रहण भले ही पृथ्वी के किसी कोने में क्यों न हो, सिद्ध योगी उस समय पृथ्वी के वायुमंडल में अद्भुत रश्मियों को, को जिन की व्याख्या वो अमृतत्त्व के नाम से करते हैं, इन अमृत की सूक्ष्म उपस्थिति वायुमंडल में होती है, जिसे केवल एक साधक और भक्त और भक्त ही जान सकता है क्योंकि वह कोई स्थूल विषय नहीं है, वो सूक्ष्म तत्व है। तो उस अमृत तत्व से योगी अपने आप को जोड़ता है, चाहे वो पृथ्वी के किसी भी क्षेत्र में घटित क्यों ना हो रहा हो रहा हो!
और सबसे बड़ा रहस्य तो ये भी है कि जो बहुत उच्च कोटी के योगी है उनका यहां तक दावा होता है कि यह वो काल है जिसका सदुपयोग करने के लिए वो वर्षों प्रतीक्षा करते हैं। Grahan ke 21 Siddha Mantra (Surya Grahan-Chandra Grahan)-HD
- ईशपुत्र
और सबसे बड़ा रहस्य तो ये भी है कि जो बहुत उच्च कोटी के योगी है उनका यहां तक दावा होता है कि यह वो काल है जिसका सदुपयोग करने के लिए वो वर्षों प्रतीक्षा करते हैं। Grahan ke 21 Siddha Mantra (Surya Grahan-Chandra Grahan)-HD
- ईशपुत्र
शनिवार, 21 जुलाई 2018
रक्तेश्वर : : बच्चों के लिए एक जादुई काल्पनिक कहानी
यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है। यह इशपुत्र द्वारा तेरह वर्ष की बहुत छोटी उम्र में लिखा गया था। उन्होंने इसे बच्चों के लिए एक बाल लेखक के रूप में लिखा था। इतनी छोटी उम्र में लिखा गया है, विभिन्न लेखन त्रुटियां हैं। इसे अनुवाद के दौरान भी अपनी मौलिकता को संरक्षित करने के लिए सही नहीं किया गया था। इस पुस्तक में, एक तरफ हिंदी में मूल हाथ से लिखे गए पृष्ठों के साथ, इसका अंग्रेजी अनुवाद भी दिया जाता है। इस पुस्तक को सुंदर ग्राफिक्स और तस्वीरों के साथ और सजाया गया है। पुस्तक की कहानी न केवल युवा बच्चों के लिए बल्कि वयस्कों के लिए भी प्रासंगिक है। इस कहानी का महत्व इस तथ्य में निहित है कि महा योगी ने इसे लिखा है जब वह एक युवा योगी थे। आज हजारों और लाख लोग हैं जो महायोगी सत्येंद्र नाथ (इशपुत्र) का सम्मान करते हैं, प्यार करते हैं और पूजा करते हैं। तो उनके लिए यह पुस्तक संरक्षित और प्रस्तुत की गई है। यद्यपि इशपुत्र ने कई कहानियां लिखी हैं, लेकिन इस पुस्तक में केवल एक कहानी शामिल है ताकि समय और उम्र की प्रामाणिकता को संरक्षित किया जा सके।
विशेषताएं और विवरण
प्रकाशन दिनांक: 3 फ़रवरी 2015
प्रकाशक: कौलंतक पीठ हिमालय
अंग्रेजी भाषा
बुधवार, 18 जुलाई 2018
महाकाल रुद्र मन्त्र
'Kaulantak Peeth Himalay' presents 'Maha Kal Rudra Sadhana' according to 'Kaulachar Tradition'. Presented matra being Kaulachari may seem fearful but is not to be considered any less powerful. It is impossible to imagine vast power of Mahakal Rudra - Kaulantak Peeth Himalay
'कौलान्तक पीठ हिमालय' प्रस्तुत करते हैं 'कौलाचार परम्परा' से 'महाकाल रूद्र मंत्र'। प्रस्तुत मंत्र 'कौलाचारी' होने के कारण थोड़ा डरावना प्रतीत हो सकता है किन्तु फिर भी इस मंत्र की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए। महाकाल रूद्र की शक्ति का पार पाना असंभव है-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
Om Hroum Vam Kshoum Joom Mahaakaala Rudaaya Hroum Hroum Hum
ॐ ह्रौं वं क्षौं जूं महाकाल रुद्राय ह्रौं ह्रौं हुं
'कौलान्तक पीठ हिमालय' प्रस्तुत करते हैं 'कौलाचार परम्परा' से 'महाकाल रूद्र मंत्र'। प्रस्तुत मंत्र 'कौलाचारी' होने के कारण थोड़ा डरावना प्रतीत हो सकता है किन्तु फिर भी इस मंत्र की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए। महाकाल रूद्र की शक्ति का पार पाना असंभव है-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
Om Hroum Vam Kshoum Joom Mahaakaala Rudaaya Hroum Hroum Hum
ॐ ह्रौं वं क्षौं जूं महाकाल रुद्राय ह्रौं ह्रौं हुं
मंगलवार, 17 जुलाई 2018
कौलान्तक पीठाधीश्वर की योग्यताएं
पीठाधीश्वर होने के मायने सबसे अलग
हैं, आमतौर पर पीठ का अर्थ होता है एक
स्थान विशेष जैसे कोई मंदिर आश्रम स्थान विशेष, किन्तु कौलान्तक
पीठ कोई एक घर या मंदिर नहीं है
वरन हिमालय का बहुत बड़ा भू भाग है, जिस पर आज
भारत की सरकार का ही अधिकार है,
इसलिए आध्यात्मिक रूप से हिमालय की धर्म
संस्कृति का प्रमुख होना ही कौलान्तक
पीठाधीश्वर होना है, और ये तो
सबसे जटिल है क्योंकि यदि आपके पास कोई मंदिर हो तो आप
उसे संभालें या कोई स्थान या आश्रम हो तो उसेर संभालें वहां
बैठ कर धर्म कार्य सम्पादित करें, किन्तु जब खुला आकाश
हजारों योजन तक फैला हिमालय हो तो क्या किया जा सकता
है, ये ठीक वैसा ही है,
की आपको कहा जाए की आप अरवों
की संपत्ति के मालिक हैं किन्तु आप
किसी भी कीमत पर एक रूपया
तक नहीं खर्च कर सकते, तो कौलान्तक
पीठाधीश्वर होने का अर्थ है कुछ
भी न होना, क्योंकि संसार तो पूछेगा ही
की आखिर आपका आश्रम कहाँ है, क्योंकि
उनको तो उसकी आदत है और आपके पास कोई
जबाब नहीं, संभवत: आपको समझ पाना उनके लिए
अब बिलकुल असम्भव है, ये तो एक पहलू हुआ, माना कि
भौतिक रूप से आप कोई सम्पदा या स्थान दिखने में असमर्थ हैं
किन्तु दूसरी और उतना ही विराट ज्ञान
प्रवाह है, सभी को ज्ञान ब्राहमण देते हैं
क्योंकि उनहोंने परम्परागत रूप से ज्ञान लिया है हालाँकि ये
कोई अनिवार्य नियम नहीं पर एक सामाजिक व्यवस्था
है और उनको ज्ञान देने वाले सन्यासी हैं जो
सिद्ध गुरुओं से ज्ञान प्राप्त कर समाज के हर वर्ग सहित
विशेषतय: ब्राहमणों तक ज्ञान पहुंचाते हैं, किन्तु
सन्यासियों के ये सिद्ध गुरु ही वो गुरु हैं जो
कौलान्तक पीठ यानि की हिमालय के
परम तेजस्वी ऋषि मुनि योगी परमहंस
होते हैं, जो इतनी कठोर तपस्या करते हैं कि
आम आदमी को बताते हुए भी डर
लगता है क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण उसको ये सब
किसी बड़े अत्याचार से कम नहीं लगता,
तब तक भूखे प्यासे साधना ताप का अभ्यास किया जाता है जब
शरीर की सबसे अंतिम सीमा
समाप्त हो जाये वो लगातार, गर्मी सर्दी,
वर्षा, जंगली जानवर, भोजन पानी का
आभाव, अकेलापन और भी न जाने कितनी
ही दारुण दुःख देने वाली परिस्थितियां का
सामना करते हैं जो सामने सदा ही मुह बाए
खडी रहती है, इस
पीड़ा का अंदाजा केवल पढ़ कर या कल्पना से
नहीं किया जा सकता, हिमालय के
किसी बर्फीले एकांत स्थान पर एक रात
काट कर देख लीजिये, चमड़ी तक फट
जाती है शरीर का रंग इतना कला हो
जाता है कि महीनो ठीक होने को
लग जाएँ, ये सब तो साधारण बाते हुयी, कौलान्तक
पीठाधीश्वर होने के अर्थ है, आप
को 64 कलाओं का ज्ञान होना चाहिए, 33 करोड देवी देवताओं का आवाहन व विसर्जन एवं पूजन
आना चाहिए, योग की सभी विधाओं का
ज्ञान होना चाहिए, तंत्र के मार्ग त्रय का भी
ज्ञान होना चाहिए, अघोर, सत्व, भक्ति, ज्ञान सहित
उपलक्षण विद्याओं का भी समावेश होना चाहिए,
पीठाधीश्वर का कठोर तपस्वी
एवं अभ्यासी होना अति अनिवार्य है,
गीत संगीत, नृत्य, हास्य, रुदन,
चित्रकला, लेखन क्षमता, कवित्व, श्रृंगार, युद्ध विद्या, दर्शन,
भाष्य क्षमता, वाक् शक्ति, कल्पनाशीलता,
परिश्रमी, मंत्र अभ्यासी, आयुर्वेद
ज्ञाता, रसायन विज्ञानी, कर्मकांडी व
योगी होना अति अनिवार्य है, 64 योगिनियों को
प्रसन्न कर व हिमालय के यक्ष एवं यक्षिणियों
की विद्याओं का ज्ञान होना ही
चाहिए, साथ ही लक्षण शास्त्र, सामुद्रिक
शास्त्र, काक भाषा, देश काल सहित विविध
ज्योतिषीय विद्याओं का ज्ञान भी, इन
सबसे ऊपर की चीज तो ये है कि
प्राचीन लिपियों जैसे ब्रम्ह लिपि, देव लिपि, भूत लिपि
व टाँकरी लिपि आदि लिपियों का ज्ञान होना चाहिए,
प्राचीन पांडुलिपियों में निहित ज्ञान का भी
पता होना चाहिए, धर्म की विविध परम्पराओं,
शाखाओं, मतों का भी ज्ञान हो, क्योंकि हिमालय
भूत प्रेत राक्षसों व दैत्यों की भी भूमि
है साथ ही नाग जाती वहां
बसती है तो पीठाधीश्वर को
नाग विद्या, गारुडी विद्या, भूत विद्या, दैत्य संवाद आदि
का परम्परागत ज्ञान होना चाहिए, कौलान्तक पीठ
को महारह्स्य पीठ कहा जाता है क्योंकि
इसकी बहुत सी बाते गुप्त व
रहस्यमयी हैं, जिनको सिद्धौग गुरु व दिव्यौघ गुरु
से प्राप्त करना होता है, बाल्यकाल से ज्ञान और विद्या को
गुप्त रख कर ही ज्ञान ग्रहण करने
की परमपरा है, एक
पीठाधीश्वर जो कि स्वयं
महायोगी होता है के लिए ये बात सबसे जटिल
हो जाती है कि उसे तंत्रमय कर्मकांड व पूजन
वर्षभर करते रहना होता है, जो कि दक्षिण
मार्गी पूजा के अंतर्गत आता है अर्थात बलि व
तामसिक पदार्थों रहित पूजन, जिसे राजसी पूजा
कहा जा सकता है, वेदों, पुराणों, शास्त्रों, तंत्र ग्रंथों यानि
आगम निगम का ज्ञान होना चाहिए, दस महाविद्याओं
सहित शिव शक्ति की प्रधान पूजा व
आवाहनी विद्या का सिद्धहस्त हो साथ
ही हिमालय पर लम्बे समय तक एकांत में
रहने व समाधी लगाने का सिद्धहस्त हो,
हिमालयों की पारिस्थितिकी का
अनुभवी हो, प्रमुखतय: शाक्त पंथी
हो किन्तु मूलतय: शैव पंथी होना चाहिए, सिद्ध
अथवा नाथ परम्परा अनुसार दीक्षित हो, काम्य
प्रयोगों सहित जनहित की विद्याओं का ज्ञाता
हो व अप्सरा साधना, भैरवी साधना,
यक्षिणी व योगिनी साधना संपन्न हो,
हादी कादी, बला अतिबला, सहित
अग्नि विद्या, मधु विद्या का जानकार हो, देशज देवलि
रीति को जनता हो और निडर निर्भय हो, यहाँ
सभी गुणों की व्याख्य करना संभव
नहीं है,
किन्तु बड़े ही गौरव का
विषय है कि चार शिष्यों नें इन विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया
और सफल हुए महायोगी सत्येन्द्र नाथ, जिनको
इस महारहस्य पीठ का
पीठाधीश्वर बना दिया गया|
हैं, आमतौर पर पीठ का अर्थ होता है एक
स्थान विशेष जैसे कोई मंदिर आश्रम स्थान विशेष, किन्तु कौलान्तक
पीठ कोई एक घर या मंदिर नहीं है
वरन हिमालय का बहुत बड़ा भू भाग है, जिस पर आज
भारत की सरकार का ही अधिकार है,
इसलिए आध्यात्मिक रूप से हिमालय की धर्म
संस्कृति का प्रमुख होना ही कौलान्तक
पीठाधीश्वर होना है, और ये तो
सबसे जटिल है क्योंकि यदि आपके पास कोई मंदिर हो तो आप
उसे संभालें या कोई स्थान या आश्रम हो तो उसेर संभालें वहां
बैठ कर धर्म कार्य सम्पादित करें, किन्तु जब खुला आकाश
हजारों योजन तक फैला हिमालय हो तो क्या किया जा सकता
है, ये ठीक वैसा ही है,
की आपको कहा जाए की आप अरवों
की संपत्ति के मालिक हैं किन्तु आप
किसी भी कीमत पर एक रूपया
तक नहीं खर्च कर सकते, तो कौलान्तक
पीठाधीश्वर होने का अर्थ है कुछ
भी न होना, क्योंकि संसार तो पूछेगा ही
की आखिर आपका आश्रम कहाँ है, क्योंकि
उनको तो उसकी आदत है और आपके पास कोई
जबाब नहीं, संभवत: आपको समझ पाना उनके लिए
अब बिलकुल असम्भव है, ये तो एक पहलू हुआ, माना कि
भौतिक रूप से आप कोई सम्पदा या स्थान दिखने में असमर्थ हैं
किन्तु दूसरी और उतना ही विराट ज्ञान
प्रवाह है, सभी को ज्ञान ब्राहमण देते हैं
क्योंकि उनहोंने परम्परागत रूप से ज्ञान लिया है हालाँकि ये
कोई अनिवार्य नियम नहीं पर एक सामाजिक व्यवस्था
है और उनको ज्ञान देने वाले सन्यासी हैं जो
सिद्ध गुरुओं से ज्ञान प्राप्त कर समाज के हर वर्ग सहित
विशेषतय: ब्राहमणों तक ज्ञान पहुंचाते हैं, किन्तु
सन्यासियों के ये सिद्ध गुरु ही वो गुरु हैं जो
कौलान्तक पीठ यानि की हिमालय के
परम तेजस्वी ऋषि मुनि योगी परमहंस
होते हैं, जो इतनी कठोर तपस्या करते हैं कि
आम आदमी को बताते हुए भी डर
लगता है क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण उसको ये सब
किसी बड़े अत्याचार से कम नहीं लगता,
तब तक भूखे प्यासे साधना ताप का अभ्यास किया जाता है जब
शरीर की सबसे अंतिम सीमा
समाप्त हो जाये वो लगातार, गर्मी सर्दी,
वर्षा, जंगली जानवर, भोजन पानी का
आभाव, अकेलापन और भी न जाने कितनी
ही दारुण दुःख देने वाली परिस्थितियां का
सामना करते हैं जो सामने सदा ही मुह बाए
खडी रहती है, इस
पीड़ा का अंदाजा केवल पढ़ कर या कल्पना से
नहीं किया जा सकता, हिमालय के
किसी बर्फीले एकांत स्थान पर एक रात
काट कर देख लीजिये, चमड़ी तक फट
जाती है शरीर का रंग इतना कला हो
जाता है कि महीनो ठीक होने को
लग जाएँ, ये सब तो साधारण बाते हुयी, कौलान्तक
पीठाधीश्वर होने के अर्थ है, आप
को 64 कलाओं का ज्ञान होना चाहिए, 33 करोड देवी देवताओं का आवाहन व विसर्जन एवं पूजन
आना चाहिए, योग की सभी विधाओं का
ज्ञान होना चाहिए, तंत्र के मार्ग त्रय का भी
ज्ञान होना चाहिए, अघोर, सत्व, भक्ति, ज्ञान सहित
उपलक्षण विद्याओं का भी समावेश होना चाहिए,
पीठाधीश्वर का कठोर तपस्वी
एवं अभ्यासी होना अति अनिवार्य है,
गीत संगीत, नृत्य, हास्य, रुदन,
चित्रकला, लेखन क्षमता, कवित्व, श्रृंगार, युद्ध विद्या, दर्शन,
भाष्य क्षमता, वाक् शक्ति, कल्पनाशीलता,
परिश्रमी, मंत्र अभ्यासी, आयुर्वेद
ज्ञाता, रसायन विज्ञानी, कर्मकांडी व
योगी होना अति अनिवार्य है, 64 योगिनियों को
प्रसन्न कर व हिमालय के यक्ष एवं यक्षिणियों
की विद्याओं का ज्ञान होना ही
चाहिए, साथ ही लक्षण शास्त्र, सामुद्रिक
शास्त्र, काक भाषा, देश काल सहित विविध
ज्योतिषीय विद्याओं का ज्ञान भी, इन
सबसे ऊपर की चीज तो ये है कि
प्राचीन लिपियों जैसे ब्रम्ह लिपि, देव लिपि, भूत लिपि
व टाँकरी लिपि आदि लिपियों का ज्ञान होना चाहिए,
प्राचीन पांडुलिपियों में निहित ज्ञान का भी
पता होना चाहिए, धर्म की विविध परम्पराओं,
शाखाओं, मतों का भी ज्ञान हो, क्योंकि हिमालय
भूत प्रेत राक्षसों व दैत्यों की भी भूमि
है साथ ही नाग जाती वहां
बसती है तो पीठाधीश्वर को
नाग विद्या, गारुडी विद्या, भूत विद्या, दैत्य संवाद आदि
का परम्परागत ज्ञान होना चाहिए, कौलान्तक पीठ
को महारह्स्य पीठ कहा जाता है क्योंकि
इसकी बहुत सी बाते गुप्त व
रहस्यमयी हैं, जिनको सिद्धौग गुरु व दिव्यौघ गुरु
से प्राप्त करना होता है, बाल्यकाल से ज्ञान और विद्या को
गुप्त रख कर ही ज्ञान ग्रहण करने
की परमपरा है, एक
पीठाधीश्वर जो कि स्वयं
महायोगी होता है के लिए ये बात सबसे जटिल
हो जाती है कि उसे तंत्रमय कर्मकांड व पूजन
वर्षभर करते रहना होता है, जो कि दक्षिण
मार्गी पूजा के अंतर्गत आता है अर्थात बलि व
तामसिक पदार्थों रहित पूजन, जिसे राजसी पूजा
कहा जा सकता है, वेदों, पुराणों, शास्त्रों, तंत्र ग्रंथों यानि
आगम निगम का ज्ञान होना चाहिए, दस महाविद्याओं
सहित शिव शक्ति की प्रधान पूजा व
आवाहनी विद्या का सिद्धहस्त हो साथ
ही हिमालय पर लम्बे समय तक एकांत में
रहने व समाधी लगाने का सिद्धहस्त हो,
हिमालयों की पारिस्थितिकी का
अनुभवी हो, प्रमुखतय: शाक्त पंथी
हो किन्तु मूलतय: शैव पंथी होना चाहिए, सिद्ध
अथवा नाथ परम्परा अनुसार दीक्षित हो, काम्य
प्रयोगों सहित जनहित की विद्याओं का ज्ञाता
हो व अप्सरा साधना, भैरवी साधना,
यक्षिणी व योगिनी साधना संपन्न हो,
हादी कादी, बला अतिबला, सहित
अग्नि विद्या, मधु विद्या का जानकार हो, देशज देवलि
रीति को जनता हो और निडर निर्भय हो, यहाँ
सभी गुणों की व्याख्य करना संभव
नहीं है,
किन्तु बड़े ही गौरव का
विषय है कि चार शिष्यों नें इन विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया
और सफल हुए महायोगी सत्येन्द्र नाथ, जिनको
इस महारहस्य पीठ का
पीठाधीश्वर बना दिया गया|
मंगलवार, 10 जुलाई 2018
गुप्त नवरात्रि में दश महाविद्याओं की साधना
कथा एवं सार
एक समय ऋषि श्रृंग प्रजाजनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकाल कर आई, और करबद्ध ऋषि श्रृंग से बोली कि, मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं,जिस कारण में कोई पूजा पाठ नहीं कर पाती, न ही ऋषि दर्शन एवं सेवा कर पाती हूँ, यहाँ तक कि ऋषियों को भेजे जाने वाला अन्न का भाग भी में नहीं दे पाती, मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन में माँ शक्ति दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूँ, उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूँ, तो ऋषि श्रृंग बोले कि, माता जिस प्रकार दो नवरात्र ग्रीष्म और शारदीय प्रतिवर्ष मनाये जाते हैं, ठीक वैसे ही दो नवरात्र और भी एक वर्ष में होते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है, जिस प्रकार नवरात्र नौ देवियों के होते हैं उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं,यदि कोई दस महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना कर ले तो जीवन धन धान्य राज्यसत्त ऐश्वर्य से भर जाता है, इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है, यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो माँ उसके जीवन को सफल कर देती हैं,लोभी,कामी,व्यसनी,सहित यदि मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि इन दिनों माता की पूजा कर ले तो जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती....इस प्रकार उस स्त्री ने ऋषि श्रृंग के वचनों पर श्रद्धा कर गुप्त नवरात्र की पूजा की और जीवन में परिवर्तन आने लगा,घर में सुख शान्ति आ गयी,पति सद्मार्ग पर आ गया,और जीवन माता की कृपा से खिल उठा.यदि आप भी कभी कभी शराब पी लेते हैं,मांसाहार कर लेते हैं और चाहते हैं की माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आये, तो इस अवसर को नहीं चूकिएगा,ये भी बता दें की तंत्र और शाक्त मत का तो ये सबसे अहम् पर्व माना जाता है,वैशनो,पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का ये अहम् पर्व माना जाता है,पाकिस्तान स्थित हिन्गुलाज देवी की सिद्धि का भी यही अहम् समय होता है,शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किया लेकिन सिद्धि नहीं मिली तो उनहोंने काल ज्ञान द्वारा ये पता किया कि गुप्त नवरात्र ही वो समय है जब शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है, ऋषि विश्वामित्र ने तो शक्तिया प्राप्त कर नयी सार्ष्टि तक रच डाली......लंकापति रावन का पुत्र मेघनाद अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करना चाहता था ताकि कोई उसे जीत ना सके....तो मेघनाद ने अपने गुरु शुक्राचार्य से परामश किया तो शुक्राचार्य ने गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करने को कहा,मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की,राम राबण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही राम भगवान् सहित लक्षण जी को नागपाश मेमन बाँध कर मृत्यु के द्वार तक प[अहुंचा दिया था,ये भी कहा जाता है की यदि नास्तिक की परिहास्वश इन समय मंत्र साधना कर ले तो भी उसे फल मिल ही जाता है,यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है,यदि आप चाहते हैं मंत्र साधना करना,लेकिन काम-काज की उलझनों के कारण नहीं कर पाते नियमों का पालन तो ये समय आपके लिए ही माता की कृपा ले कर आया है,बिना किसी नियम को पाले बस कीजिये माँ शक्ति की मंत्र साधना और पाइए मनचाही मुराद,इस साधना के बारे में कहा जाता है की साधना से मनोकामना पूरी होने की 100 % गारंटी है,बस केवल बात ही ध्यान रखना होगा की आपके मंत्र,देवी का स्वरुप और पूजा रखनी होगी गुप्त,बिना किसी को बताये,घर पर ही करें माँ को प्रसन्न,और इसका आसान सा तरीका हम आपको आज बताने जा रहे हैं,तो कीजिये गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की महासिद्ध पूर्णमनोरथी साधना...................................
--------माँ शक्ति को प्रसन्न करने का प्रमुख मंत्र-------
धूप दीप प्रसाद माता को अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से ग्यारह माला का मंत्र जप करें
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें
मंत्र-ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम: ।।
पेठे का भोग लगाएं
दस महाविद्याओं से पाइए मनचाही कामना
---------------------
काली----------------------
लम्बी आयु,बुरे ग्रहों के प्रभाव,कालसर्प,मंगलीक बाधा,अकाल मृत्यु नाश आदि के लिए देवी काली की साधना करें
हकीक की माला से मंत्र जप करें
नौ माला का जप कम से कम करें
मंत्र-क्रीं ह्रीं ह्रुं दक्षिणे कालिके स्वाहा ॥
---------------------तारा-----------------------
तीब्र बुद्धि रचनात्मकता उच्च शिक्षा के लिए करें माँ तारा की साधना
नीले कांच की माला से मंत्र जप करें
बारह माला का जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट् ॥
-------------------त्रिपुर सुंदरी--------------------
व्यक्तित्व विकास पूर्ण स्वास्थ्य और सुन्दर काया के लिए त्रिपुर सुंदरी देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें
दस माला मंत्र जप अवश्य करें
मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदर्यै नमः ॥
------------------भुवनेश्वरी------------------------
भूमि भवन बाहन सुख के लिए भुबनेश्वरी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला का प्रयोग करें
ग्यारह माला मंत्र जप करें
मन्त्र-ॐ ह्रीं भुबनेश्वर्यै ह्रीं नमः ॥
------------------छिन्नमस्ता----------------------
रोजगार में सफलता,नौकरी पद्दोंन्ति के लिए छिन्नमस्ता देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिन्यै ह्रीं फट स्वाहा ॥
-----------------त्रिपुर भैरवी-----------------------
सुन्दर पति या पत्नी प्राप्ति,प्रेम विवाह,शीघ्र विवाह,प्रेम में सफलता के लिए त्रिपुर भैरवी देवी की साधना करें
मूंगे की माला से मंत्र जप करें
पंद्रह माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा ॥
------------------धूमावती------------------------
तंत्र मंत्र जादू टोना बुरी नजर और भूत प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए धूमावती देवी की साधना करें
मोती की माला का प्रयोग मंत्र जप में करें
नौ माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा ॥
-----------------बगलामुखी-----------------------
शत्रुनाश,कोर्ट कचहरी में विजय,प्रतियोगिता में सफलता के लिए माँ बगलामुखी की साधना करें
हल्दी की माला या पीले कांच की माला का प्रयोग करें
आठ माला मंत्र जप को उत्तम माना गया है
मन्त्र-ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम: ॥
-------------------मातंगी-------------------------
संतान प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति आदि के लिए मातंगी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला से मंत्र जप करें
बारह माला मंत्र जप करें
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा ।।
-------------------कमला-------------------------
अखंड धन धान्य प्राप्ति,ऋण नाश और लक्ष्मी जी की कृपा के लिए देवी कमला की साधना करें
कमलगट्टे की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा ॥
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
एक समय ऋषि श्रृंग प्रजाजनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकाल कर आई, और करबद्ध ऋषि श्रृंग से बोली कि, मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं,जिस कारण में कोई पूजा पाठ नहीं कर पाती, न ही ऋषि दर्शन एवं सेवा कर पाती हूँ, यहाँ तक कि ऋषियों को भेजे जाने वाला अन्न का भाग भी में नहीं दे पाती, मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन में माँ शक्ति दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूँ, उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूँ, तो ऋषि श्रृंग बोले कि, माता जिस प्रकार दो नवरात्र ग्रीष्म और शारदीय प्रतिवर्ष मनाये जाते हैं, ठीक वैसे ही दो नवरात्र और भी एक वर्ष में होते हैं जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है, जिस प्रकार नवरात्र नौ देवियों के होते हैं उसी प्रकार गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं के होते हैं,यदि कोई दस महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना कर ले तो जीवन धन धान्य राज्यसत्त ऐश्वर्य से भर जाता है, इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है, यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो माँ उसके जीवन को सफल कर देती हैं,लोभी,कामी,व्यसनी,सहित यदि मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि इन दिनों माता की पूजा कर ले तो जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती....इस प्रकार उस स्त्री ने ऋषि श्रृंग के वचनों पर श्रद्धा कर गुप्त नवरात्र की पूजा की और जीवन में परिवर्तन आने लगा,घर में सुख शान्ति आ गयी,पति सद्मार्ग पर आ गया,और जीवन माता की कृपा से खिल उठा.यदि आप भी कभी कभी शराब पी लेते हैं,मांसाहार कर लेते हैं और चाहते हैं की माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आये, तो इस अवसर को नहीं चूकिएगा,ये भी बता दें की तंत्र और शाक्त मत का तो ये सबसे अहम् पर्व माना जाता है,वैशनो,पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का ये अहम् पर्व माना जाता है,पाकिस्तान स्थित हिन्गुलाज देवी की सिद्धि का भी यही अहम् समय होता है,शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किया लेकिन सिद्धि नहीं मिली तो उनहोंने काल ज्ञान द्वारा ये पता किया कि गुप्त नवरात्र ही वो समय है जब शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है, ऋषि विश्वामित्र ने तो शक्तिया प्राप्त कर नयी सार्ष्टि तक रच डाली......लंकापति रावन का पुत्र मेघनाद अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करना चाहता था ताकि कोई उसे जीत ना सके....तो मेघनाद ने अपने गुरु शुक्राचार्य से परामश किया तो शुक्राचार्य ने गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करने को कहा,मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की,राम राबण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही राम भगवान् सहित लक्षण जी को नागपाश मेमन बाँध कर मृत्यु के द्वार तक प[अहुंचा दिया था,ये भी कहा जाता है की यदि नास्तिक की परिहास्वश इन समय मंत्र साधना कर ले तो भी उसे फल मिल ही जाता है,यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है,यदि आप चाहते हैं मंत्र साधना करना,लेकिन काम-काज की उलझनों के कारण नहीं कर पाते नियमों का पालन तो ये समय आपके लिए ही माता की कृपा ले कर आया है,बिना किसी नियम को पाले बस कीजिये माँ शक्ति की मंत्र साधना और पाइए मनचाही मुराद,इस साधना के बारे में कहा जाता है की साधना से मनोकामना पूरी होने की 100 % गारंटी है,बस केवल बात ही ध्यान रखना होगा की आपके मंत्र,देवी का स्वरुप और पूजा रखनी होगी गुप्त,बिना किसी को बताये,घर पर ही करें माँ को प्रसन्न,और इसका आसान सा तरीका हम आपको आज बताने जा रहे हैं,तो कीजिये गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की महासिद्ध पूर्णमनोरथी साधना...................................
--------माँ शक्ति को प्रसन्न करने का प्रमुख मंत्र-------
धूप दीप प्रसाद माता को अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से ग्यारह माला का मंत्र जप करें
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें
मंत्र-ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम: ।।
पेठे का भोग लगाएं
दस महाविद्याओं से पाइए मनचाही कामना
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काली----------------------
लम्बी आयु,बुरे ग्रहों के प्रभाव,कालसर्प,मंगलीक बाधा,अकाल मृत्यु नाश आदि के लिए देवी काली की साधना करें
हकीक की माला से मंत्र जप करें
नौ माला का जप कम से कम करें
मंत्र-क्रीं ह्रीं ह्रुं दक्षिणे कालिके स्वाहा ॥
---------------------तारा-----------------------
तीब्र बुद्धि रचनात्मकता उच्च शिक्षा के लिए करें माँ तारा की साधना
नीले कांच की माला से मंत्र जप करें
बारह माला का जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट् ॥
-------------------त्रिपुर सुंदरी--------------------
व्यक्तित्व विकास पूर्ण स्वास्थ्य और सुन्दर काया के लिए त्रिपुर सुंदरी देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें
दस माला मंत्र जप अवश्य करें
मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदर्यै नमः ॥
------------------भुवनेश्वरी------------------------
भूमि भवन बाहन सुख के लिए भुबनेश्वरी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला का प्रयोग करें
ग्यारह माला मंत्र जप करें
मन्त्र-ॐ ह्रीं भुबनेश्वर्यै ह्रीं नमः ॥
------------------छिन्नमस्ता----------------------
रोजगार में सफलता,नौकरी पद्दोंन्ति के लिए छिन्नमस्ता देवी की साधना करें
रुद्राक्ष की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिन्यै ह्रीं फट स्वाहा ॥
-----------------त्रिपुर भैरवी-----------------------
सुन्दर पति या पत्नी प्राप्ति,प्रेम विवाह,शीघ्र विवाह,प्रेम में सफलता के लिए त्रिपुर भैरवी देवी की साधना करें
मूंगे की माला से मंत्र जप करें
पंद्रह माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा ॥
------------------धूमावती------------------------
तंत्र मंत्र जादू टोना बुरी नजर और भूत प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए धूमावती देवी की साधना करें
मोती की माला का प्रयोग मंत्र जप में करें
नौ माला मंत्र जप करें
मंत्र-ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा ॥
-----------------बगलामुखी-----------------------
शत्रुनाश,कोर्ट कचहरी में विजय,प्रतियोगिता में सफलता के लिए माँ बगलामुखी की साधना करें
हल्दी की माला या पीले कांच की माला का प्रयोग करें
आठ माला मंत्र जप को उत्तम माना गया है
मन्त्र-ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम: ॥
-------------------मातंगी-------------------------
संतान प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति आदि के लिए मातंगी देवी की साधना करें
स्फटिक की माला से मंत्र जप करें
बारह माला मंत्र जप करें
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा ।।
-------------------कमला-------------------------
अखंड धन धान्य प्राप्ति,ऋण नाश और लक्ष्मी जी की कृपा के लिए देवी कमला की साधना करें
कमलगट्टे की माला से मंत्र जप करें
दस माला मंत्र जप करना चाहिए
मंत्र-हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा ॥
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज

रविवार, 8 जुलाई 2018
श्री कुरुकुल्ला सुकुल्ला प्रभात स्तुति
।। श्री कुरुकुल्ला सुकुल्ला प्रभात स्तुति।।
शुभप्रभातं सुप्रभातं कुरुकुल्ला देव्यै नम:
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: ।
शान्तिं प्रयच्छ मे! ज्ञानं प्रयच्छ मे!
ऋद्धिं प्रयच्छ मे! सिद्धिं प्रयच्छ मे!
धनं-धान्यं, भोगं-मोक्षं, यशं देहि मे!
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: ।
शुभप्रभातम सुप्रभातम कुरुकुल्लादेव्यै नम:
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: ।
क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ऐं हुं रक्त तारायै नम:
तोतले तुरे तारे तरले कुलनायिके,
कल्याणं कुरु देवी सौंदर्य रूपवर्धिनी
नमस्तुभ्यं ईप्सितप्रदे सर्वकामप्रदायिनी,
त्रैलोक्यविजयिनी देवी सर्वमुग्धे नमो नम:,
वर अभयदात्री देवी सर्वदा सुमंगलकारिणी,
नमो नमो कुरुकुल्ले सर्वदुःख विनाशिनी
अनंता अक्षरा नित्या महाकौतुककारिणी,
अकालमृत्यु प्रशमनी सर्व शत्रु निवारिणी
त्राहि माम कुरुकुल्ले! सुकुल्ले नमोस्तुते!
सामर्थ्य शक्ति प्रदायिनी पुष्प धनुधारिणी
श्री कामकला देवी कालकालेश्वरी नमो नम: ।
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम:
शुभप्रभातम सुप्रभातम कुरुकुल्लादेव्यै नम: ।
शुक्रवार, 6 जुलाई 2018
प्रेम प्राप्ति हेतु लघु उपाय एवं साधना
क्या आपका मन किसी को पाने के लिए या जीवन साथी बनाने के लिए मचल रहा है? क्या आपके पास सबकुछ होते हुये भी प्यार नहीं है? क्या आपकी शादी नहीं नहीं हो पा रही? तो ये परेशान मत होइए आज हम आपके लिए लाये हैं वो सभी उपाय जिनको करने के बाद आपकी प्रेमिका कहेगी कि मैं जोगन तेरे प्रेम की.........
जब भी किसी को प्रेम करें तो याद रखें कि संयम और प्रतीक्षा सबसे उत्तम उपाय है
ईश्वर से प्रेम के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, क्योंकि दुआओं में असर होता है
प्रेम प्राप्ति के लिए आप भगवान् कामदेव और देवी रति के साथ साथ शिव-शक्ति,गणपति,और भगवान विष्णु जी की पूजा कर सकते हैं
इन्द्र देवता,अग्नि देवता,चन्द्रमा देवता,अप्सराओं व यक्षिणी देवियों की उपासना भी प्रेम प्रदान करती हैं
देवी दुर्गा जी से मांगी गयी प्रेम व सुख शान्ति सौभाग्य की तत्काल पूर्ती होती है
यदि प्रेम विवाह करना चाहते हैं तो ब्रत एवं दान बहुत सहायक होते हैं
प्रेम प्राप्ति के कुछ अति सरल दिव्य मंत्र
कृष्ण जी का मंत्र -ॐ क्लीं कृष्णाय गोपीजन बल्लभाय स्वाहा ॥
कृष्ण मंदिर में मुरली बांसुरी ले जा कर अर्पित करें
पान अर्पण से प्रेम प्राप्ति होती है
यदि प्रेम में फूट पड़ गयी हो तो उसे पुनह पाने के लिए भैरव जी की पूजा अचूक उपाय है
भैरव देवता को मीठी रोटी का प्रसाद बना कर अर्पित करें
मानसिक तौर से उत्तरनाथ भैरव का मंत्र जपें
भैरव जी का मंत्र-ॐ ज्लौं र्हौं क्रौं उत्तरनाथ भैरवाय स्वाहा ॥
यदि आप किसी को अपना बनाना चाहते हैं तो माँ शक्ति की पूजा करे
माता को लाल रंग का झंडा अर्थात ध्वजा चढ़ाएं व मनोकामना मांगें
माँ शक्ति का मंत्र-ॐ नमो मोहिनी महामोहिनी अमृत वासिनी स्वाहा:
देवराज इन्द्र की पत्नी इंद्रायणी की स्तुति को अमोघ माना जाता हैं कई ऋषि पुत्रियों ने उनकी स्तुति कर वर पाया है
इंद्रायणी देवी की पूजा उन्हें करनी चाहिए जो नहीं जानते की उनके जीवन में कौन आने वाला है
तब देवी प्रसन्न हो कर अत्यंत स्रेष्ठ प्रेमिका व पति या पत्नी प्रदान करती है
इंद्रायणी देवी का मंत्र-ॐ देवेंद्राणी विवाहं भाग्यमारोग्यम देहि मे
बीस के अंक को विवाह का अंक माना जाता है विवाह में समस्या पर चार खाने बना कर केवल बीस बीस लिखना चाहिय
बीस के इस यन्त्र को धारण करने से या पास रखने से विवाह हो जाता है
यन्त्र- 20 20 20 20
20 20 20 20
20 20 20 20
20 20 20 20
गोमेद नामक रत्न को गलें में पहनने से विवाह लाभ होगा
चांदी में मोती की अंगूठी पहनने से प्रेम बढेगा
हीरे अथवा जरकन के आभूषण प्रेम में बृद्धि करेंगे
नीलम की अंगूठी प्रतिष्ठित कर पहनने से और संकल्पित करने से प्रेम में सफलता मिलती है
शहद के रुद्राभिषेक से मनचाहा प्रेम मिलेगा
सोलह सोमवार के ब्रत से योग्य सुन्दर सुशील पति मिलेगा
अन्न दान करने से प्रेम विवाह संपन्न होता है
गौरी देवी को चुनरी श्रृंगार चढाने व मौली बांधने से मनमीत मिलता है
मधुर व्यबहार मीठी बाणी जीवन में स्थाई प्रेम प्रदान करने में समर्थ हैं
धीरज और संतोष के साथ साथ सकारात्मक आत्मविश्वास भी होना चाहिए
योग मेडिटेशन और संगीत सहित शाकाहार को अपनाएँ
नशों से दूर रहना चाहिए
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
जब भी किसी को प्रेम करें तो याद रखें कि संयम और प्रतीक्षा सबसे उत्तम उपाय है
ईश्वर से प्रेम के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, क्योंकि दुआओं में असर होता है
प्रेम प्राप्ति के लिए आप भगवान् कामदेव और देवी रति के साथ साथ शिव-शक्ति,गणपति,और भगवान विष्णु जी की पूजा कर सकते हैं
इन्द्र देवता,अग्नि देवता,चन्द्रमा देवता,अप्सराओं व यक्षिणी देवियों की उपासना भी प्रेम प्रदान करती हैं
देवी दुर्गा जी से मांगी गयी प्रेम व सुख शान्ति सौभाग्य की तत्काल पूर्ती होती है
यदि प्रेम विवाह करना चाहते हैं तो ब्रत एवं दान बहुत सहायक होते हैं
प्रेम प्राप्ति के कुछ अति सरल दिव्य मंत्र
कृष्ण जी का मंत्र -ॐ क्लीं कृष्णाय गोपीजन बल्लभाय स्वाहा ॥
कृष्ण मंदिर में मुरली बांसुरी ले जा कर अर्पित करें
पान अर्पण से प्रेम प्राप्ति होती है
यदि प्रेम में फूट पड़ गयी हो तो उसे पुनह पाने के लिए भैरव जी की पूजा अचूक उपाय है
भैरव देवता को मीठी रोटी का प्रसाद बना कर अर्पित करें
मानसिक तौर से उत्तरनाथ भैरव का मंत्र जपें
भैरव जी का मंत्र-ॐ ज्लौं र्हौं क्रौं उत्तरनाथ भैरवाय स्वाहा ॥
यदि आप किसी को अपना बनाना चाहते हैं तो माँ शक्ति की पूजा करे
माता को लाल रंग का झंडा अर्थात ध्वजा चढ़ाएं व मनोकामना मांगें
माँ शक्ति का मंत्र-ॐ नमो मोहिनी महामोहिनी अमृत वासिनी स्वाहा:
देवराज इन्द्र की पत्नी इंद्रायणी की स्तुति को अमोघ माना जाता हैं कई ऋषि पुत्रियों ने उनकी स्तुति कर वर पाया है
इंद्रायणी देवी की पूजा उन्हें करनी चाहिए जो नहीं जानते की उनके जीवन में कौन आने वाला है
तब देवी प्रसन्न हो कर अत्यंत स्रेष्ठ प्रेमिका व पति या पत्नी प्रदान करती है
इंद्रायणी देवी का मंत्र-ॐ देवेंद्राणी विवाहं भाग्यमारोग्यम देहि मे
बीस के अंक को विवाह का अंक माना जाता है विवाह में समस्या पर चार खाने बना कर केवल बीस बीस लिखना चाहिय
बीस के इस यन्त्र को धारण करने से या पास रखने से विवाह हो जाता है
यन्त्र- 20 20 20 20
20 20 20 20
20 20 20 20
20 20 20 20
गोमेद नामक रत्न को गलें में पहनने से विवाह लाभ होगा
चांदी में मोती की अंगूठी पहनने से प्रेम बढेगा
हीरे अथवा जरकन के आभूषण प्रेम में बृद्धि करेंगे
नीलम की अंगूठी प्रतिष्ठित कर पहनने से और संकल्पित करने से प्रेम में सफलता मिलती है
शहद के रुद्राभिषेक से मनचाहा प्रेम मिलेगा
सोलह सोमवार के ब्रत से योग्य सुन्दर सुशील पति मिलेगा
अन्न दान करने से प्रेम विवाह संपन्न होता है
गौरी देवी को चुनरी श्रृंगार चढाने व मौली बांधने से मनमीत मिलता है
मधुर व्यबहार मीठी बाणी जीवन में स्थाई प्रेम प्रदान करने में समर्थ हैं
धीरज और संतोष के साथ साथ सकारात्मक आत्मविश्वास भी होना चाहिए
योग मेडिटेशन और संगीत सहित शाकाहार को अपनाएँ
नशों से दूर रहना चाहिए
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
गुरुवार, 5 जुलाई 2018
प्रेम में सफलता वो भी बिना मंत्र!
प्रेम अनाहत चक्र से उत्पन्न होता है. ह्रदय अनाहत चक्र ही है. योग में एक ऐसा गोपनीय चमत्कार छिपा है जिसे जान कर आप हैरान हो जायेंगे. कोई दूसरा व्यक्ति हमसे इसलिए नफरत करता है क्योंकि आपका अनाहत चक्र उसे प्रेम की तरंगे नहीं भेजता या वो आपकी तरंगों को ग्रहण नहीं कर पाता. यदि आप कसी को अपना बनाना चाहते हैं या चाहते हैं की सभी आपकी ओर प्यार भरी निगाह से देखें, तो एक आसन सा उपाय है अनाहत चक्र पर ध्यान करना. जी हाँ ध्यान करना! सुबह के समय कुछ देर आराम से आलथी पालथी मार कर जमीन पर बैठ जाएँ. इस अवस्था को सुखासन कहा जाता है. और जहाँ दोनों फेफड़े जुड़ते है यानि छाती का मध्य भाग, आँख बंद कर उस स्थान पर ध्यान लगायें. अब लम्बा और गहरा श्वास भीतर भरते जाएँ और सोचें की आपकी नासिका से बादल भीतर जा रहे हैं और बारिश कर रहे हैं. जिससे एक दिव्य कमल का फूल खिल गया है. फूल के खिलते ही अन्दर से एक और फूल निकल रहा है उसके भीतर एक और,उसके भीतर एक और. इस तरह लगातार खिलता ही जा रहा है. चारों और सुगंध फैल गयी हैं. अब जब बहुत आनंद आने लगे तो उस पुष्प पर अपने इष्ट देवता का ध्यान करें.
फिर गुरु का
फिर उस व्यक्ति विशेष का जिसे आप प्रेम करते हैं. कुछ दिन इस क्रिया को दौहराइये और फिर देखिये चमत्कार. किसी मंत्र की भी जरूरत नहीं ये ध्यान का एक छोटा सा भाग है. लेकिन यदि आप लम्बे समय तक इसे करते हैं और किसी व्यक्ति विशेष की जगह गुरु और इष्ट का ध्यान करते हैं तो महाचमत्कार होगा. आप बहुत से लोगो के चहेते बनने लग जायेंगे. आपके शत्रु भी आपसे मित्र जैसा व्यहार करने लग जायेंगे.
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
फिर गुरु का
फिर उस व्यक्ति विशेष का जिसे आप प्रेम करते हैं. कुछ दिन इस क्रिया को दौहराइये और फिर देखिये चमत्कार. किसी मंत्र की भी जरूरत नहीं ये ध्यान का एक छोटा सा भाग है. लेकिन यदि आप लम्बे समय तक इसे करते हैं और किसी व्यक्ति विशेष की जगह गुरु और इष्ट का ध्यान करते हैं तो महाचमत्कार होगा. आप बहुत से लोगो के चहेते बनने लग जायेंगे. आपके शत्रु भी आपसे मित्र जैसा व्यहार करने लग जायेंगे.
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
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