बुधवार, 23 मार्च 2022

साधना मार्ग - हिमालय में तप भाग - 4


 साधना काल में उत्तम आहार, किस प्रकार के हमारे वस्त्र हो, क्या हमारे विचार हो, किस परिवेश में हम रहे यह छोटे-छोटे बिंदु साधक के अस्तित्व का निर्माण करते हैं! बहुत जरूरी है कि हम गुरु दीक्षा के समय दिए जाने वाले प्रवचन को भली प्रकार सुने! गुरु से जो ज्ञान ग्रहण किया है साधना के समय एकमात्र वही सहारा होता है। साधक के मन में यदि किसी प्रकार का भय है तो वो ऐसे स्थान पर जाकर ही उसे अनुभव कर सकता है! और यदि साधना मार्ग में साधक को किसी प्रकार का भय अनुभव हो तो वह उसे यथाशीघ्र श्रीगुरु के चरणों में निवेदित करें क्योंकि गुरु इसी परंपरा से गुजरे हुए हैं। वो इस मार्ग पर चले हुए हैं, वह जानते हैं कि उस भय से मुक्ति का उपाय क्या है। हमारे मस्तिष्क में अनेकों अनेक तंतु है, अधिकतम तंतु शायद निष्क्रिय से प़डे हैं, वह पूर्णतया सक्रिय नहीं इसलिए हम अपने आसपास होने वाले कार्यों, घटनाओं इन सब के प्रति बेहोश से रहते हैं, हमारी जागृति ही नहीं होती। जब धीरे धीरे हमारे भीतर परिवर्तन आता है तो मस्तिष्क के उन तंतुओं में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलता है! आसपास होने वाली छोटे से छोटी घटना भी हमें प्रभावित करती है, तब हम वास्तव में एक पुरुष से विराट होकर महापुरुष बन जाते हैं, अणु से विराट हो उठते हैं। बात छोटी है लेकिन हम इसकी मात्र कल्पना ना करें, किसी भी साधक की अनुभूति उसकी निजी होती है क्योंकि प्रत्येक साधक का स्तर भिन्न है अतः उसके अनुभव भी भिन्न और निजी होते हैं। साधना उतनी ही कठिन है जितना विराट हिमालय पर चढ़ना और साधना इसलिए जटिल लगती है क्योंकि हमारी वृत्तियां बह्यमुखी है, उन्हें अभ्यंतरी बनाना है, हमारा सारा का सारा ध्यान बाह्य जगत में स्थित है, उसे हम किस प्रकार भीतर ले जाए यही तो साधना पथ है! तप इसीलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इस प्रणाली के माध्यम से हम अपने पूरे के पूरे अस्तित्व को झोंक देते हैं सिर्फ इसलिए कि हम उस विराट चेतना को जागृत कर सके! धीरे-धीरे साधना का तेज शरीर पर भी दिखने लगता है; शरीर के रोग, दुःख, शोक नष्ट होने लगते हैं और हम अपने आप को स्वस्थ अनुभव करते हैं; शरीर की समस्त व्याधियां उसी प्रकार दूर हो जाती है जिस प्रकार अंधकार में दीपक जलाने पर रोशनी हो जाती है, अंधकार नष्ट हो जाता है। लगातार प्राणायाम का अभ्यास, मंत्रों का अभ्यास समस्त मानसिक कुंठाओ से साधक को मुक्ति प्रदान करता है। लेकिन इतना होने के बाद भी साधक ये नहीं जानता कि भली प्रकार साधना क्या है, अभी जिन प्रक्रियाओं से हम स्वयं को गुजार रहे हैं अथवा स्वयं जिस मार्ग से हम गुजर रहे हैं वो तो एक प्रक्रिया मात्र है। हम कभी सूर्य का प्रकाश ले रहे हैं, हम कभी वातावरण से जुड़ रहे हैं, हम कभी मन को शांत बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो ये सब परंपराएं मिलकर बस हमें तराश ही रही है। धीरे-धीरे हम विचारों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं, हमारे सहस्त्रों सहस्त्र विचार साधना पथ पर चलते चलते रुकने लगाते हैं और वो अनुभूति गहरी होती चली जाती है, हम एक ऐसे स्थिति को प्राप्त करते हैं जो न तो पूरी तरह जागृत होती है, न ही पूरी तरह से सुषुप्त, अब धीरे-धीरे साधक उस पथ को जानने लगता है, जिस पथ पर वह आगे बढ़ा, अब गुरु का एक-एक शब्द सत्य प्रतीत होता है, हम गुरु के प्रति कृतज्ञता से भर उठते हैं, हम धन्यवाद करते हैं भीतर ही भीतर उस मार्गदर्शक का जिसने हमें इस पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया! भीतर का अनंत विकास साधना के प्रथम चरण पर ही हम अनुभव करते हैं। ऐसी अनेकों छोटी-छोटी घटनाएं घटित होती है जिनके बारे में बताना संभव नहीं और साधना में कभी कबार साधक थोड़ी मनमानी भी कर लेता है; वह स्वयं अपने साथ कुछ प्रयोग करता है; वह स्वयं अपनी साधनाओं के साथ भी प्रयोग करता है, इसमें कोई बुराई नहीं, किन्तु ये जानना अनिवार्य है कि हम किस हद तक स्वतः मनमाने प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि सावधानी हमेशा रखनी होगी! कोई भी ऐसी प्रणाली हमारे तप मार्ग में विघ्न पैदा कर सकती है जो तमस प्रधान हो; अतः गुरु से अपने साधना क्षेत्र को भली प्रकार सीख लेना चाहिए। धीरे-धीरे साधक स्थिरधी होता चला जाता है उसके भीतर दिव्य ज्ञान उत्पन्न होता है, वह प्रकृति से सब कुछ प्राप्त कर लेता है, साधक पूर्णतया भीतर से परिवर्तित हो जाता है! एक साधना का ही सूत्र है जो उसे परिवर्तित करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है! देह तो साधक की परिवर्तित नहीं हो सकती क्योंकि वो आणविक है, भौतिक है किंतु भीतर के अणु परिवर्तित होते चले जाते हैं, साधक का बाह्य आवरण भी सूक्ष्म तलों पर परिवर्तित होता चला जाता है, ये सूक्ष्म बदलाव गुरु तुरंत भांप सकता है; अथवा कोई सिद्ध योगी, कोई दूसरा साधक इस अनुभव को..इस परिवर्तन को देख सकता है लेकिन जन साधारण के लिए कोई अनुभव..कोई परिवर्तन सुलभ नहीं !

-ईशपुत्र

बुधवार, 16 मार्च 2022

होली - प्रेम का उत्सव

होली की साधना एवं महत्त्व संक्षेप में :
होली जीवन की प्रफुल्लता का पर्व है, प्रकृति के श्रृंगार, जीवों से सुख, मानव की प्रसन्नता का काल होली कहलाता है, होली ज्योतिषीय आधार सहित चिकित्सीय आधार और साधना का विशिष्ट समय लिए आने वाला दुर्लभ पर्व भी माना जाता है, रस और श्रृंगारमय वातावरण होने के कारण इसे प्रेम का उत्सव कहा जाता है, इस दिन प्रेम की ऐसी वयार बहती है की शत्रु भी मित्र हो जाते हैं, धार्मिक आधार ये भी है कि ये काल बुरे पर अच्छे की जीत का समय है, शास्त्रों के अनुसार स्वत: सिद्ध मुहूर्तों में से एक होली भी है, होली को कल्पतरु काल भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन अनेक मन्त्रों कि सिद्धियाँ प्राप्त कि जाती है, होली के दिन किये गए सभी प्रयोग चमत्कारी रूप से त्वरित और दिव्य परिणाम ले कर आते हैं, इस दिन गुरु से परलौकिक दीक्षाएं प्राप्त कि जाती हैं, जीवन के अभावों को दूर करने के लिए इस काल में अवश्य साधना करें,शीघ्र विवाह, प्रेम प्राप्ति,शत्रु वशीकरण, सहित सर्वजन मोहन जैसे प्रयोग इस दिन किये जाते हैं, ईश्वर के सच्चे भक्तों को इस दिन निःस्वार्थ साधनाएँ ही करनी चाहियें, सौंदर्य-सम्मोहन के साथ ही कुण्डलिनी जागरण का मंत्र मार्गीय प्रोग भी इसी दिन से शुरू किया जा सकता है, होली के कुछ गुप्त रहस्य भी होते हैं जिन्हें गुरु केवल योग्य शिष्यों को ही बताता है।
आइये अब होली के कुछ दिव्य प्रयोगों के बारे में जानते हैं

धन लक्ष्मी प्रयोग-
लाल रंग से माथे को रंग कर लक्ष्मी माता के मन्त्रों का जाप करें लक्ष्मी कि कृपा बरसेगी
मंत्र-ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि स्वाहा ॥
कमल गट्टे की माला से मंत्र का जाप करें
लाल गुलाल में कुछ दक्षिणा राशि रख कर दान करें व मंत्र का एक बार उच्चारण करें
मंत्र-श्री महालक्षमयै नम: दक्षिणां समर्पयामि।

रोग एवं ग्रह बाधा नाश हेतु प्रयोग-
हरे रंग से माथे को रंग कर सूर्य देवता के मन्त्रों का जाप करें तो बार-बार आने वाली मुसीबतों का नाश होता है
मंत्र-ॐ ऐं आदित्याय विद्महे सर्वारिष्ट निवृत्तये फट् ॥
हल्दी से स्वस्तिक का चिन्ह बना कर पुजा करें
यथा शक्ति अन्न दान करें

शत्रु वशीकरण प्रयोग-
पीले रंग से माथे को रंग कर हनुमान जी के मन्त्रों का जाप करें तो, जो अकारण शत्रु बन जाते है तो भी वे मित्र हो जायेंगे
मंत्र-ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ॥
मंत्र जाप के बाद गौग्रास अवश्य दें
हनुमान जी को सिन्दूर भेंट करें

मनोवांछित शीघ्र विवाह प्रयोग-
गुलाबी रंग से माथे को रंग कर कामाख्या देवी जी के मंत्र का जाप करें, तो मनोवांछित वर अथवा कन्या से विवाह होता है और शीघ्र विवाह होता है
मंत्र-स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद प्रसीद स्वाहा ॥
माता को पुष्प माला अर्पित करें
रुद्राक्ष माला का जाप करें

होली के दिन देवी कामाख्या जी की सोलह शक्तियों का नाम लेने से देवी प्रसन्न हो कर सब दुखों का नाश करती है, सावधानी पूर्वक नाम लिख कर उनको बार बार कहना चाहिए, देवी के ये सोलह नाम हैं-अन्नदा, धनदा, सुखदा, जयदा, रसदा, मोहदा, ऋद्धिदा, सिद्धिदा, वृद्धिदा, शुद्धिदा, भुक्तिदा, मुक्तिदा, मोक्षदा, शुभदा, ज्ञानदा, कान्तिदा, यदि आप दिव्य तेजस्विता प्राप्त करना चाहते हैं आध्यात्मिक तेज चाहते हैं तो होलिकाग्नि पर मंत्र ध्यान लगाना चाहिए

मंत्र-ॐ ह्रौं तेजस्विनी ज्वल्ल होलिकाग्ने स्वाहा ॥
विशेष बात यह है कि किसी 64 कला संपन्न दिव्य गुरु से दीक्षा अवश्य लेँ और होली जैसे पर्व के दौरान गुरुपूजन करें, शास्त्र कहता है कि संत-दर्शन और उनके चरणवंदन से आयुआरोग्य प्राप्त होता है, तपस्वी गुरु कि चरणपादुका-पूजन से दिव्य प्रज्ञा प्राप्त होती है

कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ