गुरुवार, 24 जनवरी 2019

कौलासुर

एक संप्रदाय है ! हिन्दू धर्म का एक ऐसा संप्रदाय जिसे "महाहिन्दू" कहा जाता है । "महाहिन्दू" इसलिए क्योँकि वो केवल एकाध देवी-देवता पर नहीँ वरन् "तैत्तीस करोड देवी-देवताओँ" पर विश्वास करता है, उसे कहते है "कौलान्तक संप्रदाय" या "कौल संप्रदाय" ! हिमालय के नाथ-सिद्धोँ का ये प्रमुख संप्रदाय है । इसी से इस संपूर्ण पृथ्वी की शोभा बढती है कि ये ऐसा संप्रदाय है जो एक ओर आस्तिकता की बात करता है तो दुसरी ओर नास्तिकता की बात करता है ! एक ओर इस पीठ मेँ दैत्य, भूत, प्रेत, गण, राक्षस, कूष्माण्ड, भैरव, बेताल रहते है और दुसरी ओर यहीँ देवता, मनुष्य, गंधर्व, किन्नर, किरात, नाग इत्यादि सुशोभित होते है । इस पीठ के दोहरे पहलू है : एक स्थूल पीठ; जो हिमालय पर्वत के रुप मेँ आपको दिखाई देता है, जितना भी हिमालय पर्वत है सारा का सारा #कौलान्तक_पीठ है ! और एक महाहिमालय है, एक "महाकौलान्तक पीठ" है, जो कि सूक्ष्म हिमालय है, जिसे अदृश्य हिमालय कहा जाता है जो इन चर्मचक्षुओँ से नहीँ देखा जा सकता ! लेकिन यहाँ एक विशेष बात ये है कि, संपूर्ण विश्व को आध्यात्मिक रुप से प्रेरणा देनेवाला, अपनी ओर आकर्षित करनेवाला, बुलानेवाला जो संप्रदाय है वो हिमालय ही है, वो कौलान्तक संप्रदाय ही है । इस कौलान्तक संप्रदाय के योगियोँ नेँ जिनको सिद्ध, नाथ-सिद्ध योगी कहा गया उन्होँने सदियोँ से अनेकोँ धर्मगुरुओँ को अपनी ओर बुलाया है प्रेरणा देकर हिमालय; उन्हे थोडा-बहुत ज्ञान दिया और वापस भेजा धारा मेँ ! कि पुनः समाज मेँ जाओ, संसार मेँ जाओ और इसका भला और कल्याण करो । और जब-जब इस संसार मेँ आततायी और आसुरी शक्तियोँ को बल मिला है, उनको बढावा मिला है और वो सत्ता मेँ आई है, उनको शक्तियाँ प्राप्त हुई है तब-तब इस पीठ नेँ अपने किसी महाबली योद्धा को उनसे निपटने के लिए भेजा है । ये योद्धा अपने-अपने तरीकोँ से युद्ध लडते है ! कोई अस्त्र-शस्त्रोँ से, कोई त्याग-वैराग से, कोई योग से तो कोई युद्ध से, कोई सुदर्शन चक्र से तो कोई त्रिशूल से, कोई अपने वचनोँ से तो कोई अपने दिव्य कर्म और अपनी भूमिका से, प्रस्तावना से । हर युग मेँ धर्म की स्थापना का उत्तरदायित्व लेनेवाले इस कौलान्तक संप्रदाय के मध्य मेँ (जिसे आज तक बहुत कम लोग जानते इसलिए क्योँकि उसे "रहस्य पीठ" कहा जाता है, वो रहस्योँ के आवरण मेँ रहता है ।) उन्होँनेँ ये कहा कि, "कलियुग के आने पर दो ही तत्त्व इस संसार मेँ होंगे; एक है "कौल" और दुसरा है "कौलासुर" । मनुष्य केवल दो ही भागोँ मेँ विभक्त होंगे, या तो वो "कौल" होंगे या वो "कौलासुर" होंगे ! अर्थात् या तो वो "कौलान्तक संप्रदाय" को माननेवाले होंगे "कौलान्तक संप्रदाय" के साथ आगे बढनेवाले होंगे या फिर वो "कौलान्तक संप्रदाय" के विरोधी होंगे ।" जितनी भी ये आध्यात्मिक विरासत है इसे कौलान्तक संप्रदाय ही संचालित करता है । ये हो सकता है कि बहुत से लोग जलन के मारे या डाह के मारे या ईर्ष्या-द्वेष के वश इस बात को मानने से इनकार कर देँ कि उनका कौलान्तक पीठ या कौलान्तक संप्रदाय से कोई लेना-देना है लेकिन वास्तविकता ये है कि इस विश्व का कोई भी धर्म, जाति, संप्रदाय ऐसा नहीँ है जिसका संबंध महाहिमालय या कौलान्तक संप्रदाय से न रहा हो लेकिन खैर हमेँ अपनी मान्यता रखने का अधिकार है, उन्हेँ अपनी मान्यता रखने का अधिकार । लेकिन मैँ यहाँ जो विशेष बात जहाँ आपका ध्यान लाना चाहता हुँ वो है "एक मान्यता" जो मैने आपको बताई कि संपूर्ण पृथ्वी पर केवल दो ही तत्त्व होंगे या तो "कौल" या फिर "कौलासुर" इन दो के अतिरिक्त तीसरा कोई तत्त्व इस सृष्टि मेँ, इस संसार मेँ नहीँ होनेवाला । जैसे जैसे कलियुग प्रगाढ होता जाएगा ये दो विचारधाराएँ बहुत तेजी से विभक्त होने लगेगी । अब प्रश्न ये है कि "कौल" कौन है ? "कौलासुर" कौन है ? क्योँकि "कौल" शब्द से ही आपको लगेगा कि "कौल" कहने का तात्पर्य है "अन्तिम", "सर्वश्रेष्ठ" और "आनंद की, उच्चता की पराकाष्ठा" उस सीमा का समापन जहाँ हो जाए जिसे हम "अच्छाई" कहते है वो #कौल होता है, "महसिद्ध", "परमसिद्ध", "अलौकिक", "अमोघ" और "दिव्य" ! और जो #कौलासुर है, "कौलासुर" का सीधा सा तात्पर्य है "बुराईयोँ से घिरे हुए", "स्वार्थपरायण", "कलहप्रिय", "हमेशा तनाव मेँ रहनेवाले", "नकारात्मक तत्त्वोँ को पैदा करनेवाले", "नकारात्मक तत्त्वोँ के समर्थक", "हमेशा उलटी बातेँ, उलटी खबरेँ फैलानेवाले", "दुषित विचारोँ को संपूर्ण ब्रह्माण्ड मेँ फैलानेवाले" ऐसे लोगोँ को #कौलासुर कहा गया है, क्योँकि वो "कौलासुर" है और "असुर" का तात्पर्य है "नकारात्मक शक्ति" इसिलिए "मार्कण्डेय पुराण" मेँ भी महर्षि मार्कण्डेय कहते है भगवती की स्तुति करते हुए #कौलासुरविध्वंसिनी अर्थात् जो कौल-असुरोँ का वध करनेवाली है और जो कौलोँ के द्वारा पूजित होनेवाली है, "महाकौलाचारिणी" है । जिस भगवती को "कौलाचारिणी" कहा गया, अर्थात् "कौल कुल" के अनुसार जिनकी पूजा-पाठ होती है, "कौल कुल" के अनुसार हम जिनकी स्तुति, स्तवन करते है, "कौल कुल" के अनुसार हम जिनका वंदन करते है वही तो ये "माँ शक्ति" है...और कौल-असुर ? जो "अधर्म" की ओर है ! या तो धर्म है या अधर्म है, दो ही तत्त्व इस संपूर्ण पृथ्वी पर है तीसरा कोई तत्त्व नहीँ इसलिए #कौल का तात्पर्य होता है "श्रेष्ठ", "दीक्षित", "गुरु-प्रदत्त मार्गीय", "गुरु के बताये पदचिन्होँ का अनुसरण करनेवाला", "वेद, पुराण, शास्त्र, आगम, निगम को माननेवाला"।
क्योँकि एक शब्द है #हिन्दू जिसके संबंध मेँ ये कहा जाता है और बहुत सारे लोगोँ को पता ही नहीँ है कि "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई है ! कोई कहता है जी सिन्धु घाटी की सभ्यता के कारण हिन्दू है, कोई कहता है इस वजह से हिन्दू है, जबकि "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति "कौल" से ही हुई है ! कौल पंथ पर चलनेवाले व्यक्ति को ही हिन्दू अथवा महाहिन्दू कहा जाता है ! हिन्दू वो है जो सभी तत्त्वोँ का समावेश करता है अर्थात् जो अग्नि की उपासना करता है, जो वायु की उपासना करता है, जो पञ्च प्रधान तत्त्वोँ की साधना-आराधना करता है और उसी के माध्यम से ईश्वर की ओर गति चाहता है । हिन्दू उसे कहते है जो इस संसार मेँ रहते हुए ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, उत्सव, शोक, विरह सबको अनुभव करते हुए भी अपने जीवन के केन्द्रबिन्दू को ईश्वर और ईश्वरत्व पर स्थापित रखे इसलिए हिन्दू होना बहुत अमोघ है । "सिद्ध" होने के बाद ही कोई व्यक्ति हिन्दू हो सकता है और हम लोग अगर हिन्दू है तो ये जीवन की श्रेष्ठता है और मैँ कहता हुँ कि "सिद्ध" होना केवल किसी देशविशेष के नागरिकोँ का ही अधिकार नहीँ है बल्कि "सिद्ध" होने के लिए तो आप विश्व के किसी भी कोने मेँ जाइए, आप किसी भी देश के रहनेवाले ही क्योँ न होँ आप #सिद्ध हो सकते है ! इसलिए इस बात को अपने झहन मेँ बिठा लीजिए कि यदि आपके अंदर वो गुण है, आप यदि ईश्वर को प्राप्त करना चाहते है, यदि आपका ईश्वर मेँ विश्वास है और आप ईश्वर की सत्ता को स्वीकारते है और आप सभी कलाओँ को स्वीकारते है गीत, संगीत, साहित्य, ललितकलाएँ, इतिहास कुछ भी जो भी आपने संसार मेँ देखा हो विज्ञान भी; यदि सभी तत्त्वोँ को स्वीकारते है तो आप निश्चित ही आप "सिद्ध" है और वही "कौल" है । "कौल" का तात्पर्य है "कुलीन" अर्थात् जो सभी का सम्मान करना जानता हो । "कुलीन" व्यक्ति कौन होता है ? जो अपने "कुल" को मर्यादा के अनुसार आगे बढाए; जो अपने राष्ट्र को, विश्व को एक अच्छे पथ पर ले जाना चाहेँ; और वो जो सुख-शान्ति बाँटते हुए, आत्मचिन्तन करते हुए ईश्वर के पथ पर जाये उसे ही हमारे कुल मे "कुलीन" कहा जाता है और "कौल" का तात्पर्य है "आखरी", "अन्तिम" ! इस पृथ्वी का अन्तिम मनुष्य ही "कौल" कहलाता है क्योँकि ये कहा गया कि हर व्यक्ति जो शक्ल से मनुष्य जैसा दिखता है वास्तव मेँ वो "मनुष्य" होता नहीँ है और विदेशोँ मेँ तो ऐसा मैने सुना, किताबोँ मेँ भी पढाया जाता है कि बन्दरोँ से वो इन्सान बने है ! मुझे तो नहीँ लगता इन्सान बने भी है अभी तक तो बहुत सारे बेचारे बीच मेँ ही लटके है लेकिन हमारे यहाँ ऐसा नहीँ होता है ना ! इस बात को दिमाग मेँ बिठा लेना ! हमारे यहाँ पहले से ही हम मनुष्य है और मनुष्य ही रहेंगे, ये बन्दर- बन्दर बीच मेँ आते-जाते रहते है हम इनकी चिन्ता नहीँ करते क्योँकि आज भी बन्दर मेरी दृष्टि मेँ बन्दर ही है । तो "अन्तिम मनुष्य" अर्थात् इस सृष्टि का अन्तिम मनुष्य "कौल" कहलाता है क्योँकि शक्ल से भले ही मनुष्य जैसे सब दिखे लेकिन उनके अंदर जो मानवीय तत्त्व है, जो जो मानवीय गुण है, जो कलाएँ है, जो सौष्ठव है, जो उसकी पराकाष्ठा है, जो उसका आनंद है, जो उसकी मस्ती है, जो उसका आह्लाद है वो सब तो नष्ट हो जाते है मनुष्य मेँ ! जीवन मेँ प्रेम, सहिष्णुता, सौहार्द, भ्रातृत्व, स्नेह ये गुण तो रहे ही नहीँ और ये गुण केवल कौलोँ मेँ होते है ! कौल अर्थात् श्रेष्ठ ! और कौलाचारी, कौलान्तक संप्रदाय के साधक, भैरव, भैरवियाँ और इस संसार मेँ जो भी व्यक्ति इस संप्रदाय को मानता है ये विश्वास ऋषि-मुनियोँ का रहा है कि वही लोग #कौल है ! हालाँकि मेरी परिभाषा बहुत छोटी और सिमटी हुई है देखना, इसे आप अनेको प्रकार से वर्गीकृत कर सकते है । प्रश्न नं 1. क्या अगर कोई हिन्दू धर्म को नहीँ मानता और वो अच्छा और कुलीन नहीँ हो सकता ? और वो यदि अच्छे नियमोँ का पालन करता है सत्य, अहिंसा, त्याग, अपरिग्रह, प्रेम, आस्तेय इत्यादि तो क्या वो हिन्दू नहीँ है ? हम तो कहते है वो हिन्दू है भले ही वो किसी जाति, संप्रदाय, लिंग, वर्ण और किसी भी प्रकार का गोत्र का हो । तो शास्त्र कहता है "सत्य" की ओर जो जाये वो कौल है, वो सिद्ध है और जो "षड्यन्त्र" की ओर जाये...जैसे मान लीजिए एक कोई बेचारा कौल सिद्ध साधक अपने पथ पर बढ रहा है लेकिन लोग ये बताने के लिए कि न ये आदमी तो बहुत गलत है, उसके खिलाफ षड्यन्त्र करेंगे, उसके खिलाफ न जाने कैसी-कैसी बातेँ करेंगे और ये कहेंगे कि, "देखिये ! ये व्यक्ति अपने आपको सच्चाई का पूजारी कहता है लेकिन सत्य से दूर-दूर तक इस व्यक्ति का कोई लेना-देना नहीँ ।" तो आप समझ गये ! उस व्यक्ति को जो षड्यंत्र के तहत वो नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे है वही लोग दुष्ट है, वही लोग #कौलासुर है और #कौलासुरविध्वंसिनी अर्थात् वो शक्ति जो इन सब का विध्वंस करेगी; वही "माँ शक्ति" है और वो इस अद्भूत रणनीति के तहत इनका विध्वंस करेगी कि इन्हेँ खुद ही पता नहीँ चल पायेगा ! ये अपने महानगर बसाते जा रहे है, तो बसाओ; लेकिन एक दिन यही महानगर तुम्हारे अन्त के कारण बन जायेंगे इसलिए तुम्हेँ चाहिए कि तुम इस बात का निर्णय आज ही कर लो कि क्या तुम "कौल" हो या तुम "कौलासुर" हो । कौलासुर का तात्पर्य मैंने आपको पहले ही बता दिया, "नकारात्मक तत्व" । अपने भीतर नकारात्मकता ना आने दो क्योंकि ठीक उसी समय, उसी दिन, उसी क्षण तुम्हारा पतन शुरू हो जाता है जब तुम हीन भावनाओं से भर उठते हो, अपना विश्वास खो देते हो, ईश्वर के पथ को तुम नकार देते हो और अपने अस्तित्व को परम अस्तित्व मानना शुरू कर देते हो और एक बात सुन लीजिए, ईश्वर हो या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इस बात से फर्क पड़ता है कि क्या आप अहंकारी है या नहीं ।

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

शाबर कुरुकुल्ला मंत्र

कौलान्तक सम्प्रदाय की प्रमुख देवी "रक्त तारा" जिसे "देवी कुरुकुल्ला" और "सुकुल्ला" या "तोतला" जैसे नामों से पुकारा जाता है। वे चमत्कारों और रहस्यों की देवी के रूप में विख्यात हैं व पूजी जाती हैं।  देवी अति शीघ्र प्रसन्न हो कर वरदान देती हैं।  कौलाचारियों की महाअराध्या देवी का मंत्र स्वयं "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" की वाणी में प्रस्तुत है। शाबर कुरुकुल्ला मंत्र-ॐ नमो कुरुकुल्ले अन्न-धन वर्षिणी सकलकामाकर्षिणी सिद्ध हो-सिद्ध हो-सिद्ध हो माँ।


रुद्राक्ष के चमत्कारी महारह्स्य

भगवान शिव के प्रिय रुद्राक्ष में स्वयं शिव का अंश होता है, रुद्राक्ष को शिवाक्ष,शर्वाक्ष,भावाक्ष,फलाक्ष,भूतनाशन,पावन,हराक्ष, नीलकंठ,तृणमेरु,शिवप्रिय, अमर और पुष्पचामर भी कहते हैं, आयुर्वेद के ग्रंथों में भी रुद्राक्ष की महामहिमा का वर्णन है, आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष को महौषधि,दिव्य औषधि आदि कह कर इसके दिव्य गुणों को विस्तार से बताया गया है, रुद्राक्ष की जड़,छाल,फल,बीज और फूल सबमें औषधीय व दैवीय गुण छिपे हुये है. यदि आप तंत्र मंत्र जादू टोना अथवा किसी बुरे साए से परेशान हों! किसी की नजर ने जीना दूभर कर रखा हो! तरह तरह से ग्रहों की दशाओं ने जीवन की नैया को डावा-ड़ोल कर दिया हो! बुद्धि विवेक मस्तिष्क तनाव या किसी समस्या के कारण ठीक से काम न कर पा रहे हो! साथ ही आप यदि हृदय रोगों से परेशान हों, नक्षत्र दोष के कारण बनते काम बिगड़ रहे हों! तो अब समय आ गया है, "दुर्भाग्य के नाश का" और शिव की तरह प्रसन्न और मुक्त होने का. शिव पुराण में कहा गया है कि जिसने रुद्राक्ष धारण कर रखा हो, वो तो स्वयं शिव ही हो जाता है, जी हाँ ठीक सुना आपने जो भी व्यक्ति रुद्राक्ष धारण कर ले वो शिव के सामान ही दिव्य हो जाता है, लेकिन इसके लिए आपको जाननी होगी कुछ अतिगोपनीय विधियाँ,जो हम आज गहन अध्ययन केबाद आपके लिए ले कर आये हैं, अगर आपको लगता है कि आपका भाग्य साथ नहीं दे रहा, आप बहुत ही ज्यादा चंचल है और इस बजह से लगातार अपना नुक्सान कर रहे हैं, तो शिव के मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर रुद्राक्ष धारण कीजिये, आपके जीवन में स्थिरता आने लगेगी. राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश होगा, जीवन के संघर्षों से आपको राहत मिलेगी, साथ ही अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को रोकेगा शिव का एक चमत्कारी रुद्राक्ष, सकन्ध पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष से आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है, कार्य, व्यवसाय, व्यापार में अपार सफलता दिलवाता है, रुद्राक्ष सुख समृद्धि प्रदान करता है, साथ ही साथ पाप, शाप, ताप से भी भक्त की रक्षा करता है, हम आपको बता दें कि रुद्राक्ष भारत, नेपाल, जावा, मलाया जैसे देशों में पैदा होता है, भारत के असाम, बंगाल, देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में रुद्राक्ष पैदा होतें है, रुद्राक्ष का फल कुछ नीला और बैंगनी रंग का होता है जिसके अन्दर गुठली के रूप में स्थित होता है शिव का परम चमत्कारी दैविक रुद्राक्ष, लेकिन रुद्राक्ष का एक हमशक्ल भी होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, पर उसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते, शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की क्षमता उसके मुखों के अनुसार ही होती है, रुद्राक्ष एक मुखी से ले कर इक्कीस मुखी तक प्राय: मिल जाते है, सबकी अलौकिकता एवं क्षमता अलग अलग होती है, हिमालय की तराइयों से प्राप्त रुद्राक्ष की महिमा सबसे बड़ी कही गई है, दस मुखी और चौदह मुखी रुद्राक्ष अतिदुर्लभ कहे गए है, पंद्रह से ले कर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष साधारणतय: नहीं मिल पाते, और एक मुखी की तो महिमा ही अपरम्पार है, जिसे मिल जाए उसे जीवन में फिर कुछ और पाना शेष नहीं रहता, वो केवल अत्यंत भाग्य वाले को ही मिल पाता है, रुद्राक्षों में नन्दी रुद्राक्ष, गौरी शंकर रुद्राक्ष, त्रिजूटी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष, लक्ष्मी रुद्राक्ष, त्रिशूल रुद्राक्ष और डमरू रुद्राक्ष भी होते है, जो अंत्यंत दैविक माने गए हैं. रुद्राक्ष का प्रयोग औषधि के रूप में तो होता ही है साथ ही इसे धारण भी किया जाता है या पूजा के लिए,माला के रूप में प्रयुक्त होता है,स्फटिक शिवलिंग, बाण लिंग अथवा पारद शिवलिंग को स्थापित कर यदि रुद्राक्ष धारण कर लिया जाए तो वो व्यक्ति सम्राटों जैसा बैभव प्राप्त कर लेता है, रुद्राक्ष ऐसा तेजस्वी मनका है जिसका उपयोग बड़े बड़े योगी संत ऋषि मुनि महात्मा परमहंस तो करते ही है साथ ही साथ तांत्रिक अघोरी जैसी वाममार्गी विद्याओं के जानकार भी इसके चमत्कारी प्रभावों के कारण इसकी महिमा गाते फिरते है, भारत के सिद्ध रुद्राक्षों का प्रयोग तो आज विश्व के हर कोने में बैठा व्यक्ति कर ही रहा है, तो आप और हम इसके दिव्य गुणों से दूर क्यों रहें? स्कंध पुराण में कार्तिकेय जी भगवान शिव से रुद्राक्ष की महिमा और उत्पत्ति के बारे में प्रश्न पूछते है तो स्वयं शिव कहते है कि "हे षडानन कार्तिकेय ! सुनो, मैं संक्षेप में बताता हूँ, पूर्व काल में युद्ध में मुश्किल से जीता जाने वाला दैत्यों का राजा त्रिपुर था. उस दैत्यराज त्रिपुर नें जब सभी देवताओं को युद्ध में परास्त कर कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. तो ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, प्रमुख देवगण तथा पन्नग गण मेरे पास आ कर त्रिपुर का बध करने के लिए मेरी प्रार्थना करने लगे. देवताओं की प्रार्थना सुन कर संसार की रक्षा के लिए मैं बेग से अपने धनुष के साथ सर्व देवमय भयहारी कालाग्नि नाम के दिव्य अघोर अस्त्र को ले कर दैत्य राज त्रिपुर का बध करने के लिए चल पड़ा. लेकिन उसे हम त्रिदेवों से अनेक वर प्राप्त थे, इसलिए युद्ध में लम्बा समय लगा, एक हजार दिव्य वर्षों तक लगातार क्रोद्धमय युद्ध करने से व योगाग्नि के तेज के कारण अत्यंत विह्वल हुये मेरे नेत्रों से व्याकुल हो आंसू गिरने लगे, योगमाया की अद्भुत इच्छा से निकले वो आंसू जब धरा पर गिरे और बृक्ष के रूप में उत्त्पन्न हुये, तो रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए, ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य होता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुये शिव कृपा पा सकते हैं
 विद्या बुद्धि एवं सफलता प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष
विद्या,ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के लिए तीन मुखी व छ: मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसे धारण करने से तीब्र बुद्धि होती है व अद्भुत स्मरण शक्ति प्राप्त होती है, जो पढाई में कमजोर हों वे इसे अवश्य धारण करें,बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा, तीन मुखी या छ: मुखी रुद्राक्ष धारण, करने से रचनात्मक कार्यों में भी बहुत लाभ मिलता है, जैसे यदि आप फैशन डिजाइनर हो, सौन्दर्य जगत से जुड़े हो, लेखक या सम्पादक हों, चित्रकार या अनुसंधानकर्ता हों तो ये रुद्राक्ष आपको बहुत लाभ प्रदान करेंगे,
  रोजगार,व्यक्तित्व विकास एवं इन्टरवियू में सफलता हेतु रुद्राक्ष
यदि आप अपना चौमुखी विकास करना चाहते हों तो या रोजगार पाना चाहते हों तो नौ मुखी, चार मुखी या फिर तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करें, इसे धारण करने से सहनशीलता,बीरता,साहस,कर्मठता में बृद्धि होती है, इसका सबसे बड़ा गुण ये भी है की ये रुद्राक्ष संकल्प शक्ति में बृद्धि करते हैं जिससे आप अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंचते ही है, बेरोजगार या नौकरी की तलाश कर रहे व्यक्ति को इससे उत्तम रोजगार प्राप्त होता है, यदि आप बार बार इन्टरवियू में असफल हो रहे हों तो इनमेंसे कोई एक रुद्राक्ष तुरंत धारण करेने से लाभ मिलेगा, यदि आप जीवन में आगे की बजाय पीछे की और जा रहे हों तो इन रुद्राक्षों को धारण करने से उन्नति अवश्य मिलेगी
सामाजिक,पारिवारिक समस्याओं एवं विवाह सम्बन्धी समस्याओं के लिए रुद्राक्ष
यदि आपका विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह के बाद गृहस्थी सुखी नहीं है, आपके सम्बन्ध अपने रिश्ते नाते वालों के साथ ठीक नहीं हैं या समाज में शत्रु ही शरु हो गए हों, तो आपको दो मुखी रुद्राक्ष या गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए,इसे धारण करने से घर में होने वाले परस्पर झगड़ों से मुक्ति पाई जा सकती है, ये रुद्राक्ष पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन,गुरु शिष्य अथवा मित्रों आदि के साथ के मतभेदों को दूर करता है, लड़के लड़कियों के विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो तो इसे जरूर धारण करवाएं लाभ मिलेगा, आप मंगलबार के दिन इनमे से कोई भी रुद्राक्ष धारण करें
 दुर्घटना से बचाव, बुरी नजर, जादू-टोनों, बुरे ग्रहों से बचाव व अपनी सुरक्षा हेतु रुद्राक्ष
यदि आप अपनी सुरक्षा को ले कर बहुत चिंतित हों, वाहन चलने से घबराते हों, बार-बार दुर्घटनाएं होती हों, कुंडली हमेशा ही कोई नीच ग्रह या बाधा बनी रहती हो, भाग्य आपका साथ न दे रहा हो, जादू-टोनों से या फिर बुरी नजर से परेशान हों, भूत प्रेत अथवा सांप चूहे छिपकली से डर लगता हो, तो आपको ग्यारह मुखी या फिर दस मुखी रुद्राक्ष धारण काना चाहिए, यदि घर में बुरे साए का वास हो जो आपको परेशान करता हो तो सभी पारिवारिक सदस्य इसे धारण करें, यदि आप पवित्रता से रख सकते हैं तो वाहन अथवा तिजोरी की चाबी में छल्ले के रूप में भी आप इसका प्रयोग कर सकते हैं
 प्रेम प्राप्ति अथवा आकर्षण हेतु रुद्राक्ष
यदि आप किसी से प्रेम करते है और चाहते है की आपका प्रेम परिणित हो अथवा आप आकर्षण प्राप्त करना चाहते हों, तो छ: मुखी या तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें, आप थियेटर या मंच से जुड़े हुये हों, धर्माचार्य हों या शिक्षक हों, मार्केटिंग या प्रचार माधयमों जैसे टीवी रेडिओ फिल्म आदि से जुड़े हैं तो आप ये रुद्राक्ष धारण कर लाभ पा सकते हैं, आपका प्रेम सम्बन्ध यदि टूट गया है, या आपके जीवन में कोई है जिसे आप खोना नहीं चाहते तो ये रुद्राक्ष फायदेमंद रहेगा
अखंड धन लाभ एवं कार्य व्यवसाय, व्यापार से लाभ प्राप्त करने हेतु रुद्राक्ष
यदि आप व्यापारी हैं कोई व्यवसाय करते हैं, कोई कंपनी चलाते है, या कोई निजी व्यवसाय करते है जिससे आपको धन लाभ की आकांक्षा है, तो आप सातमुखी, ग्यारह मुखी,गणेश रुद्राक्ष अथवा लक्ष्मी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं, इन रुद्राक्षों को धारण करने से गरीवी का नाश होता है, जिस व्यवसाय में आप हैं उसी से आपको लाभ मिलने लगता है, आपका यश, मान, प्रतिष्ठा ऐसी बढती है की हर ओर से धन ही धन आने लगता है,आपके जीवन के सुखों में ओर अधिक बृद्धि होती है
रोगमुक्ति, स्वास्थ्य व लम्बी आयु हेतु रुद्राक्ष
यदि आप सदा तरह-तरह के रोगों से ही घिरे रहते हों, बीमारियाँ आपका पीछा ही नहीं छोड़ रही हों, यदि आप मानसिक रूप से भी परेशान ही रहते हों, चिंताएं खाए जा रही हों, कुंडली या क्रूर ग्रह अकाल मृत्यु का संकेत दे रहे हों तो आपको चौदह मुखी या आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, अकाल मृत्यु को टालने की इनमें अभूतपूर्व क्षमता है, रोग नाश के साथ-साथ जीवन की विकट परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने की क्षमता भी प्रदान करता है
समाजसेवा, शासन-प्रशासन, सत्ता या राजनीती में सफलता हेतु रुद्राक्ष
 यदि आप समाज सेवी हैं और अपने कार्यों को तीब्रता से करना चाहते हैं, शासन प्रशासन में अपनी पकड मजबूत करना चाहते हैं, आप युवा नेता या गहरे राजनीतिज्ञ हैं और अपने क्षेत्र के मुकाम को हासिल करना चाहते हैं, तो आपको बारह मुखी या सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इससे व्यक्ति की कीर्ति, यश, सूर्य के सामान चमकने लगती है, इसे धारण करने से बाणी में चातुर्य आता है संबोधन में आकर्षण पैदा होता है, आप अपनी गहरी छाप सब पर छोड़ सकते हैं
मुसीबत से या कोर्ट कचहरी मुकद्दमों से शीघ्र मुक्ति हेतु रुद्राक्ष
यदि आप पर कोई मुसीबत आन पड़ी हो कोई रास्ता न सूझ रहा हो या आप कोर्ट कचहरी के मामलों में फँस गए हों, आपका धैर्य जबाब देने लगा हो, जीवन केवल संघर्ष ही रह गया हो, अक्सर हर जगह अपमानित ही महसूस करते हों, तो आपको सात मुखी, पंचमुखी अथवा ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहियें, समस्याओं के मध्य से भी तुरंत हल निकाल आएगा



कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ