रविवार, 16 दिसंबर 2018

बृहस्पति कल्प और उसका कोर्स

सिद्ध धर्म के अनुसार, ‘बृहस्पति कल्प’ यह बृहस्पति जी के द्वारा किया गया सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। बृहस्पति कल्प को गहराई से समझने के बाद बृहस्पति जी के सम्पूर्ण कुलों को समझना संभव है।
सिद्ध धर्म के अनुसार, ‘बृहस्पति जी के आस्तिक और नास्तिक दोनों दर्शनों के लिये ‘बृहस्पति कल्प’ सर्वोच्च ग्रंथ है। बृहस्पति कल्प को समझने के लिए एक व्यक्ति को पहले उसके आधार में स्थित लौकिक और अलौकिक कुल और विचारधारा को समझना होगा। प्रमुख कुल और प्राथमिक विचारधाराओं में पारंगत होने पर ही कोई व्यक्ति बृहस्पति कल्प में पारंगत हो सकता है।
बृहस्पति कल्प के पांच खंड है और उन्ही को और अधिक स्पष्ट करने के लिये उपखंड भी है। तथा ‘आंतरराष्ट्रीय कौलान्तक सिद्ध विद्यापीठ’ भी बृहस्पति कल्प पर आधारित सात दिनों का कोर्स आयोजित करता है।

बृहस्पति कल्प के खंड और उसके उपखंडों के बारे में नीचे लिखा गया है

बृहस्पति कल्प खण्ड-1

-बृहस्पति योग आगम
-योग की उत्पत्ति
-108 योगों में श्रेष्ठ योग कौन ?
-योग के उपयोगी और अनुपयोगी भाग
-समाधी और पूर्णता में अंतर
-बृहस्पतिकृत योग ‘क्रिया योग’ का सार
-क्रिया योग और कुण्डलिनी
-क्रिया योग के उपप्रकार
-क्रिया योग की विधियां
-क्रिया योग की उपलब्धि
-क्रिया समाधी

खण्ड-2

बृहस्पति दर्शन
देवगुरु के 12 स्वरुप और आवश्यकता
-सत्व गुण, सत्व सृष्टि और सात्विक मनुष्य
-रजस् गुण, रजस् सृष्टि और राजसिक मनुष्य
-तमस् गुण, तमस् सृष्टि और तामसिक मनुष्य
-मनुष्य : आत्मा या शरीर ?
-ब्रह्माण्ड में अकेला या परित्यक्त?
-मनुष्य का प्रकृति पर अधिकार
-आवश्यकताएं और नियम
-मनुष्य के लिए सर्वोपरि नियम

उपखण्ड-1

-आस्तिक दर्शन
-आस्तिकता क्या है?
-आस्तिक क्यों हों?
-आस्तिकता का अंत कहाँ है?
-आस्तिकता गुण या दोष?
-मनुष्य आस्तिक क्यों नहीं हैं?
-आस्तिकता के प्रयोग
-क्या आस्तिकता मृत्यु के पार ले जाती है?
-क्या आस्तिकता से सत्य मिलता है?
-आस्तिकता का सार

उपखण्ड-2

-नास्तिक दर्शन
-नास्तिकता क्या है?
-नास्तिक क्यों हों?
-नास्तिकता का अंत कहाँ है?
-नास्तिकता गुण या दोष?
-मनुष्य नास्तिक क्यों नहीं हैं?
-नास्तिकता के प्रयोग
-क्या नास्तिकता मृत्यु के पार ले जाती है?
-क्या नास्तिकता से सत्य मिलता है ?
-नास्तिकता का सार

खण्ड-3

-कर्मकाण्ड
-कर्मकाण्ड क्या है?
-कर्मकाण्ड की कितनी उपयोगिता?
-कर्मकाण्ड के गुण और दोष
-कर्मकाण्ड और देश, काल, परिस्थिति
-कर्मकाण्ड के नियम
-कर्मकाण्ड का परिचय

उपखण्ड-1

-वैदिक कर्मकाण्ड का परिचय
-वैदिक कर्मकाण्ड की शैली
-वैदिक कर्मकाण्ड के मंत्र
-वैदिक कर्मकाण्ड के यन्त्र
-वैदिक कर्मकाण्ड के गुण दोष
-वैदिक कर्मकाण्ड का सार

उपखण्ड-2

-(तान्त्रिक) अवैदिक कर्मकाण्ड का परिचय
-(तान्त्रिक) अवैदिक कर्मकाण्ड की शैली
-(तान्त्रिक) अवैदिक कर्मकाण्ड के मंत्र
-(तान्त्रिक) अवैदिक कर्मकाण्ड के यन्त्र
-(तान्त्रिक) अवैदिक कर्मकाण्ड के गुण दोष
-(तान्त्रिक) अवैदिक कर्मकाण्ड का सार

उपखण्ड-3

-अकुल कर्मकाण्ड का परिचय
-अकुल कर्मकाण्ड की शैली
-अकुल कर्मकाण्ड के मंत्र
-अकुल कर्मकाण्ड के यन्त्र
-अकुल कर्मकाण्ड के गुण दोष
-अकुल कर्मकाण्ड का सार

खण्ड-4

-पुराण और तंत्र विरोध मार्ग क्यों?
-सत्य कौन पुराण या तंत्र?

उपखण्ड-1

पुराणिक कोष
-पुरातन ज्ञान क्यों आवश्यक?
-इतिहास कितना सत्य और असत्य?
-षडयंत्र और क्षात्र वासना
-षडयंत्र और दुर्बुद्धि वासना
-तथ्य और जनप्रसार
-रणनीति, कुप्रचार और असत्य
-जीवन के दुःख और उनका उपयोग
-हृदय, 5 विकार और षडयंत्र

उपखण्ड-2

-तांत्रिक कोष
-तांत्रिक होना क्यों आवश्यक?
-इतिहास निर्माण क्या है?
-सिद्धि क्या है और इसका महत्त्व क्या है?
-सिद्धि और छल में क्या समानता और असमानता?
-जीवन क्या है प्राप्ति या त्याग?
-तांत्रिक षट्कर्म आवश्यक और दोषपूर्ण क्यों?
-मनुष्य अतृप्त क्यों?

खंड-5

काम्य प्रयोग और चिकित्सा
–तांत्रिक विधि
–वैदिक विधि
–देह और स्वास्थ्य
–देह और सौंदर्य
–देह और वासनाएं
–वासनापूर्ती और वासना त्याग
–काम क्या है?
–काम की सीमा क्या है?
–कामवासना पाप या पुण्य?
–वासना का मनोलोक
–गृहस्थ धर्म, आकर्षण और पाप
–नियोग, वैश्यावृत्ति और प्रेम सम्बन्ध
–जीवन दर्शन का सार
–मृत्यु की प्रतीक्षा

कोई टिप्पणी नहीं: