रसेश्वरी साधना दीक्षा एवं पारद विज्ञान प्रयोग

रस का अर्थ होता है पारा और पारा शिव का तेजस कहलाता है। शिव अघोर हैं और उनकी प्रिय धातु पारा भी उनसा ही अघोर है। शिव और पारे के अनेकों अनसुलझे रहस्य हैं, जिनकी कोई थाह नहीं। जिस प्रकार ह्रदय के रस भाव होते हैं, उसी प्रकार धातुओं का भाव और रस पारे में हैं। पारा यूँ तो एक तरल धातु है लेकिन ये सिद्धों का बड़ा ही प्रिय है। प्राचीन काल से भारत से ले कर मिस्र, रोम, यूनान, चीन, फारस सहित लगभग सभी स्थानों पर पारे का रहस्यमय प्रयोग किया गया है। जिसे उनहोंने अपने-अपने नाम दिए। हम बात भारत की करते हैं जहाँ पारद विज्ञान रस शास्त्र के अंतर्गत आता है जिसे "रस वेद" भी कहा गया है। हिमालय के सिद्धों नें पारे से भस्म बना कर अनेकों-अनेक जटिल रोगों का उपचार किया है व सिद्ध नाम की चिकित्सा पद्धति संसार को दी, जो आज भी प्रचलित है, अनेकों वृहद् भाग हैं। लेकिन हम आपको वो कारण बताने बताने जा रहे हैं जिस कारण पारद विज्ञान दुनिया भर में फैला। १) लोहे और ताम्बे जैसी धातुओं को स्वर्ण में बदलना-शिव स्वयम शक्ति को आगम निगमों में ये बताते हैं की "देवी पारद सर्वश्रेष्ठ है और उसमें मेरा निवास है। पारद को कल्पवृक्ष जानना चाहिए। यदि कोई सिद्ध पारे को बाँध कर उसके संस्कार भली प्रकार कर ले तो वो पदार्थ परिवर्तन सहित कई गोपनीय सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। किन्तु रस को बांधना पाप के अंतर्गत आता है। इसलिए मैं ये अधिकार केवल शैव और कौलाचारियों को प्रदान करता हूँ। इस गोपनीय विद्या को पापी, कुकर्मी, व्यसनी, अपराधी, व्यभिचारी, अश्रद्धावान और अदीक्षित को कभी भी प्रदान नहीं करना चाहिए। देवी! इस विद्या द्वारा निश्चित ही धातुओं को स्वर्ण अथवा चंडी में परिवर्तित किया जा सकता है। इसी विधि द्वारा अनेकों गुप्त कामना सिद्धि मणियों का निर्माण किया जा सकता है। चिंतामणि, लालमणि, दिव्यमणि, अमृतमणि, तेजस मणि, पारस मणि आदि का निर्माण इसी पारद क्रिया द्वारा होता है। कायाकल्प , चिरंजीवी व नित्य तरुण आदि क्रियाएं भी इसी विद्या से संभव हैं। रसायन सब पर फलीभूत नहीं होता क्योंकि ये कोई सांसारिक विद्या नहीं है, की जिसका सब पर एक सामान प्रभाव हो। गुरु भक्त, नाथ कुल सेवक, शक्ति संगम मार्गीय, सूर्योपासकों सहित मेरे भक्त ही इस विद्या के रहस्यों को जान पाते हैं।"-रसेश्वर कौतुक तंत्र यही कारण रहा की विश्व भर से बड़े-बड़े तन्त्रचारी, आयुर्वेदाचारी, चिकित्सक, ज्योतिषी, नक्षत्रवेता, सम्राट व जादूगर-जादुगरनियाँ इस विद्या को सीखने के लिए भारत के दुर्गम हिमालयों तक पहुंचे। कश्मीर, कुलूत, महाचीन, त्रिगर्त , कामख्या, बंगाल, वीरक्षेत्र व नेपाल आदि देशों में इस विद्या का बहुत प्रचार था क्योंकि ये भूमि सिद्धों व नाथो की गोपनीय साधना भूमि थी। पराचीन सिद्ध और नाथ शैव और शाक्त थे व तंत्रमार्गी थे। इन सिद्धों की भैरवियां व स्वयं सिद्ध कभी बूढ़े नहीं होते थे, साथ ही इनकी आयु सैकड़ों वर्ष होती थी। यही सिद्ध भारत के राजाओं व व्यापारियों को अपनी सेवाओं के बदले स्वर्ण व चाँदी दिया करते थे। जिस कारण भारत सबसे ज्यादा सोने-चांदी वाला देश बन गया। इतना सोना-चंडी हुआ की देश को कई-कई बार लूट लेने के बाद भी सोना-चांदी कम नहीं हुआ। बड़े-बड़े जादूगर सिद्ध किये गए पारे को हासिल करने के लिए विश्व भर से भारत आने लगे। वो यहाँ से सिद्ध पारा ले जा कर उससे अपने-अपने देशों में चमत्कार करते और धन व शौहरत कमाते। जादुगरनियाँ और सम्राट लम्बी आयु और खोई जवानी वापिस पाने की चाहत में सिद्ध पारद हासिल करने भारत आते। बड़े-बड़े ज्योतिषी संस्कारित पारद गुट्टीका को हासिल करने के लिए नाथ सिद्धों की सेवा करते और गुट्टीका मिलने पर अपने देश जा कर सटीक भविष्यवाणियाँ करते। सबसे अनोखा विषय तो ये है की सिद्ध पारद को छूने से ही बहुत से असाध्य रोग तीन दिन के भीतर ठीक हो जाते थे। इसलिए मिस्र जैसे क्षेत्रों के लोग भी सिद्ध पारद के लिए कौलदेश यानि भारत आते। सबसे मजेदार बात तो ये है की पारा भारत में तब आसानी से उपलब्ध नहीं था। सारा पारा विदेशों से ही लाया जाता था। जिसे लाना आसान नहीं होता था क्योंकि पारा पृथ्वी की सबसे भारी धातु है। मणियाँ बनाने के लिए विश्व के लगभग हर महाद्वीप के सम्राट या उनके प्रतिनिधि कौलदेश यानि भारत आये और शुभ नक्षत्रों व काल में बनी मणियाँ अपने साथ ले गए।
२)दिव्य आध्यात्मिक और जदुआई शक्तियां-पारे के अनेक शोधन व संस्कार होते हैं, जिससे पारा सिद्ध हो जाता है। पारे के पूर्ण १०८ संस्कार होते है। जिनमेंसे १६ अति प्रमुख हैं व २६ संस्कारों तक का विवरण ग्रंथों में आपको मिल जाएगा। लेकिन मंत्र बद्ध और तांत्रोक्त पारा बेहद चमत्कारी हो जाता है। जिसका मनचाहा प्रयोग हो सकता है। जैसे प्राचीन विमान सिद्ध पारे की ऊर्जा से उड़ान भरते थे, कुण्डलिनी जागरण व शक्तिपात प्राप्त व प्रदान करने के लिए पारद का प्रयोग गुप्त रूप से होता था। सिद्ध पारे के प्रयोग से ही तांत्रिक जलगमन, वायुगमन व अदृश्य होने जैसी क्षमताएं प्राप्त करते थे। चक्रवर्ती सम्राट पारे का सेवन वीर बनने हेतु किया करते थे। साथ ही पारे के सिद्ध शिवलिंग की पूजा कर अजेय व मृत्युजयी हो जाते थे। सिद्ध पारद के आध्यात्म में इतने प्रयोग थे की जिनको बताना यहाँ संभव ही नहीं है। संक्षेप में कहा जाए तो तंत्र के षट्कर्म पारद विज्ञान के लिए खेल ही थे। ये दो बड़े कारण रहे की विश्व का कोई देश या बुद्धिजीवी रसायन और पारद विज्ञान से अछूता नहीं रहा। यही रसायन और पारद विज्ञान आधुनिक कैमिस्ट्री का जनक है ये बात सभी जानते हैं। हालांकि आधुनिक कैमिस्ट्री तत्व की ठीक-ठीक भौतिक व्याख्या करता है व सभी प्रश्नों का ठीक उत्तर भी देता है। स्वयं "ईशपुत्र कौलान्तक नाथ" आधुनिक कैमिस्ट्री के छात्र रहे हैं। लेकिन आधुनिक कैमिस्ट्री केवल तत्वों के दृश्य विज्ञान को ही आधार मानती है जबकि प्राचीन रसायन शास्त्र का मानना है की धातुओं आदि में अपने कुछ पारलौकिक गुण होते हैं। बस यहीं से आधुनिक और प्राचीन अलग होते हैं अन्यथा दोनों में कोई ज्यादा भेद नहीं है। प्राचीन समय में रसायन को बड़ा ही श्रेष्ठ स्थान प्राप्त था लेकिन भारत को अपनी विद्याओं की अधिक प्रसिद्धि का खामियाजा भुगतना पडा और न विद्यायों को हासिल करने के लिए अनेक देशों के राजाओं और हमलावरों नें ग्रथों को लूट लिया व कई सिद्धों को उठा कर अपने देश ले गए और जो नहीं माने उनका बढ़ कर दिया। जिससे नए विद्यार्थियों नें भय के कारण इसे सीखना कम कर दिया और इसके जानकार एकांत में अपने प्रयोगों के लिए चले गए। आज रसायन यानि रस वेद को आधुनिक विज्ञान केवल एक कल्पना और कैमिस्ट्री का कम ज्ञान मानता है। वर्तमान काल में अब इसके जानकारों का मिलना ही अपने में बड़ी बात हो गई है। तथाकथित बुद्धिजीवियों ने ऐसा वातावरण दुनिया भर में बना दिया है की कोई भी इस पुरानी विद्या पर काम न कर सके, इसलिए इसके विरुद्ध किताबे लिखी गई, सेमीनार किये गए, पर्दाफाश जैसी कार्यशालाएं लगाई गई और इसे अंधविश्वास करार दे दिया गया। अब हालत ये है की न तो कोई इसे सीखेगा और ना ही किसी को सीखने दिया जाएगा। यदि आप और हम प्रयास करते हैं तो कहा जाएगा की ये गुमराह कर रहे हैं और धन हड़पने की साजिश रच रहे हैं साथ ही कानूनी कार्यवाही की धमकियां देंगे। लेकिन हम कहते हैं की पैसा हमारा है, हमने कमाया है और हम अपना प्रयोग करना चाहते हैं और उसमें धन लगायेंगे, क्योंकि ये हमारी स्वतंत्रता है। भले ही कुछ मिले या ना मिले। चंद शब्दों में इतना बता देने से ही शायद आपको पारे और रसायन का महत्त्व पता चल गया होगा। लेकिन ये सब बताने का अर्थ ये बिलकुल नहीं की आप प्रस्तुत साधन करें ही करें। हम आपको कोई लालच या धोखा नहीं दे रहे व आपको वैधानिक रूप से चेतावनी देते हैं की आप हमारी साधनाओं व प्रयोगों में शामिल ना हों व दक्षिणा आदि ना दें। ये सभी प्रयोग व साधनाएँ केवल "कौलान्तक सम्प्रदाय" को मानने वालों के हैं। यदि इसके बाबजूद भी आप हमें प्रार्थना भेजते हैं तो उसके जिम्मेवार आर्थिक, मानसिक व शारीरिक रूप के साथ साथ समय हानि के आप स्वयं जिम्मेवार होंगे। यदि आपको लगता है की कोई ऐसी विद्या थी और खोजी जानी चाहिए व सीखी जानी चाहिए तो आप तभी अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग कर साधना में सम्मिलित हों।
कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें- १) पारद विज्ञान और रसायन विज्ञान को कुशल मार्गदर्शक व कौल गुरु अथवा महाचेतना के सान्निध्य में ही संपन्न करें क्योंकि ये विज्ञान जटिलतम व गोपनीय होने के साथ ही अत्यंत प्राणघातक है। आपकी असावधानियों से व गुरु आज्ञा अह्वेलना से आपकी जान जा सकती है या स्थिति गंभीर हो सकती है। याद रखें की किताबों से देख कर या इंटरनेट देख कर अथवा कहीं पढ़-सुन कर रसायन और पारद के प्रयोग बिलकुल ना करें। अन्यथा स्थिति ऐसी हो सकती है की ना तो प्राण जाएँ और ना ही आप ठीक हों। २) सिद्ध पंथ और नाथ पंथ में ये ज्ञान परम्परानुगत है। हिमालय के सिद्धों कौलाचारियों और महयोगियों को पारद विज्ञान व रसायन का पूर्ण ज्ञान होता है अत: उनकी कहानियां सुन कर वैसा ही करने का प्रयास ना करें। उनके पास जो पारा होता है वो रासायनिक विधियों व औषधियों द्वारा शोधित व मर्दित किया गया होता है। जिसमें कोई भी हानिकारक तत्व नहीं होते। बल्कि वो पारद अत्यंत बलशाली व चमतकारी होता है। ३) पारे को अभक्ष्य यानि नहीं खाए जाने वाला तत्व कहा गया है।पारा पूरी तरह से जहरीला होता है इसलिए किसी भी कारण इसका सेवन नहीं करना चाहिए। पारद भस्म का सेवन करने से पहले चिकित्सक की राय व पारद भस्म की शुद्धता का आंकलन करना बेहद जरूरी है क्योंकि ये आपकी जिंदगी का प्रश्न है। संस्कार करने के बाद भी पहले पारे का परीक्षण किया जाता है की कहीं ये जहरीला तो नहीं। इसके बाद कुशल गुरु और योग्य चिकित्सक की देख रेख में ही सिद्ध पारद गुट्टीका व भस्म का सेवन आदि किया जाता है। हम एक बार फिर आग्रह करते हैं की आप पारे का सेवन बिलकुल ना करें व इससे दूर ही रहें। ४) पारे को गर्म करने से बचें व पारद प्रयोगों के दौरान उत्पन्न होने वाली अत्यंत विषैली गैसों से विशेष सावधानी रखें। पारद व रसायन प्रयोगों के लिए कहीं दूर एकांत में अपने यंत्र आदि स्थापित कर ही पारद और रसायन प्रयोग करना चाहिए। पारे को मुख बंद पात्र में रखें व बच्चों की पहुँच से दूर रखें। यदि आपका प्रयोग संपन्न नहीं हुआ या किसी कारण पारे का प्रयोग नहीं हो सका तो उसे हर कहीं ना फेकें। क्योंकि पारे को फैकना शिव द्रोह कहलाता है। अत: पारे को किसी कबाड़ी या किसी प्रयोगशाला को दे दें। कसी भी कीमत पर नदी या पानी में पारे को ना फेकें। ५) आयुर्वेदिक जडी-बूटियों व अम्ल, रसायन का प्रयोग सावधानी से करें। अम्ल से अपनी त्वचा, आँखों को बचाए रखें व अम्लीय साँसे ना ले ये फेफड़ों को तुरंत गंभीर हानि पहुंचाता है। कहने तात्पर्य ये है की हर और से आपको पूर्ण सावधानी रखनी होगी। हाथों में आधुनिक चिकित्सीय दस्ताने पहन कर ही पारे को अपने हाथों में लेना चाहिए। हालांकि सावधान साधक सीधे अपने हाथों पर भी इसे ले सकता है। लेकिन थोड़ी सी मात्रा का शरीर में जाना कभी-कभी बड़ी मुसीबत बन सकता है। ६) क्योंकि ये सारी प्रणाली साधनात्मक है ना की कैमिस्ट्री इसलिये आपका सर्वप्रथम रसायन में अधिकार होना चाहिए। जो आपको गुरु दीक्षा यानी की "रसेश्वरी दीक्षा" से प्राप्त होगा। "रसेश्वरी साधना" ही पारद और रसायन की प्रथम साधना है जिससे आपको निश्चित ही अद्भुत सफलताएँ प्राप्त होती हैं। लेकिन "रासेश्वरी साधना" भी अपने आप में एक खतरनाक साधना दीक्षा है अत: किसी प्रकार की हानि ना हो इसलिए साधक को "स्वर्णाकर्षण भैरव" के मन्त्रों का जाप व साधना नित्य करनी चाहिए। जिससे अखंड धन लाभ व स्वर्ण की प्राप्ति होती है। ७) ये समस्त प्रयोग शिव आधीन है व श्रीविद्या के अंतर्गत आते हैं। इसलिए आपको देवक्रम का ध्यान पूजन भी करना होगा जैसे की देवी महालक्ष्मी जी का पूजन, श्री गणेश जी का पूजन, श्री कुबेर जी का पूजन आदि। "कौलान्तक सम्प्रदाय" में शिव के रूद्र स्वरूप की कुल्लुका का कुलाचार विधि से शिरोस्थापन किया जाता है। याद रहे की यदि आपको कभी शैव और शाक्त दो पारद और रसायन सिद्धांत मिलें तो आपको शैव सिद्धांत को ही प्रमुखता देनी चाहिए। क्योंकि शक्त मत में दैत्य मत भी मिश्रित है जो आपको कभी भी हानि पहुंचा सकता है। किन्तु "कौलान्तक संप्रदाय" के साधक दोनों को करने के सर्वथा योग्य है क्योंकि ये ज्ञान "गुरु शुक्राचार्य" द्वारा कौल मत को दिया गया है। ८) जब भी आप पारे को ठोस करें तो सबसे पहले "पारद शिवलिंग" नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि पारद शिवलिंग को पूर्ण विधि व समय, काल गणना व शिव वास के अनुसार बनाना चाहिए। अन्यथा कभी भी पारद और रसायन के क्षेत्र में सफलता नहीं मिलेगी। ये अमोघ वचन है। ९ ) पारद विज्ञान और रसायन में "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" को भैरवी मृगाक्षी जी व उनके दिव्य गुरु "श्री सिद्ध रसेश्वर नाथ जी महाराज" से भी अनन्य ज्ञान प्राप्त हुआ है। स्वयं भैरवी मृगाक्षी नें "गुह्य मुद्रा पारद" बना कर "कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज" को दिया है कहा जाता है की इसका प्रयोग विपत्ति काल में करने पर "ईशपुत्र" संसार की किसी भी स्त्री से मनचाहा कार्य करवा सकते हैं। लेकिन ये सिद्ध पारद "ईशपुत्र" नें हिमालय की गुप्त गुफाओं में योग्य समय के लिए छुपा कर रखा है। ऐसी कथा और मान्यता "कौलान्तक सम्प्रदाय" में प्रसिद्द है १०) याद रखें की इस विद्या के बहुत से मंत्र है जो की कौलक्रम, चीनक्रम, समयक्रम, संहारक्रम, अघोरक्रम सहित वामक्रम आदि अनेकों क्रमों में विभक्त है। योग्य गुरु ही इसे जानता है व बता सकता है। प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों में व भूत लिपि सहित टांकरी लिपि में इसके बहुत से विधान, प्रयोग व मंत्र वर्णित हैं। इस ज्ञान के अभाव में बेचारे दीन-हीन साधक संस्कृत के स्तुति स्त्रोतों से काम चलाते हैं जैसे की श्री सूक्त, सुवर्णधारा, कनक धारा स्तोत्र आदि आदि व ऐसे निम्न याचक मंत्रो से पूजन करते हैं जो की भिखारी वृत्ति के होते हैं अथवा अच्छी भाषा में कहा जाए तो दास भाव के होते हैं जैसे यशम देहि, धनम देहि, सौभाग्यम देहि आदि-आदि। पारद और रसायन याचना का नहीं वीर भाव का विषय है साथ ही इसमें कुबेर, लक्ष्मी की प्रधानता नहीं वरन माँ योगमाया शक्ति के "रसेश्वरी स्वरूप" की ही प्रधानता रहती है और उनकी साधना की जाती है। ११) यदि आपको सौभाग्य से "रसेश्वरी मंडल व आवरण पूजा" का अवसर मिल जाए, तो जानना चाहिए की आप वास्तव में पारद विज्ञानी व रसायनी साधक होने के लायक है व एक दिन अवश्य रसेश्वर बन पायेंगे। आपकी श्रद्धा, भक्ति व ईशपुत्र के प्रति एक अखंड निष्ठा आपको सर्वोच्च बना कर ही रहेगी तो पारद और रसायन एक भाग भर ही हैं। इस तरह ये तो केवल एक झलक हमने यहाँ प्रस्तुत की है लेकिन ये बहुत गंभीर, बड़ा और रोमांचक है। समझ नहीं आता की इसकी शुरुआत कहाँ से की जाए। लेकिन जब स्वयं "ईशपुत्र" हैं तो इसकी चिंता हमें नहीं करनी चाहिए। भारत की अति दुर्लभ विद्या को सीखना व ऋषियों के अद्भुत ज्ञान से परिचित होना अपने आप में बड़ी संपत्ति है। यहाँ अब हम इससे अधिक नहीं बताने वाले क्योंकि ये वेबसाईट सार्वजनिक मंच है और इस ज्ञान पर केवल सर्वोच्च अवतारी साधकों का ही अधिकार है अन्यों के लिए इसकी कथा सुनना ही पाप नाशक माना गया है। शिव के ज्ञान पर उनके निरंकुश साधकों का अधिकार होता है और मातृभूमि के तेज से ये विद्या सीखने का महाअवसर अब आपके सम्मुख है। तो बोलो "जय भोले नाथ-सदा हमारे साथ"।-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
इस साधना में योग्यता व पात्रता हेतु आपको "स्वर्णाकर्षण भैरव" के मन्त्र का रुद्राक्ष की माला पर उन्नीस माला का मंत्र जाप करना होता है।