गुरुवार, 7 जून 2018

हिन्दू जागरण

"महासिद्ध" जो हमारा पंथ है...जो गुरु गोरक्ष नाथ से पहले था...जो मत्स्येन्द्र नाथ से भी पहले है...जो योगिनियोँ से भी पहले है...जो यक्षिणियोँ, किन्नरियोँ, गन्धर्विणीयोँ से भी पहले है...जो ऋषि-मुनियोँ से भी पहले रहा है...जो "आदि सिद्ध" कहलाते है...जो केवल "महादेव" से चला है...और "महादेव" को भी हम तब महादेव नहीँ कहते थे अपितु "रुद्र" कहकर सम्बोधित करते थे ।


हम तो प्राचीन ऋषियोँ से है, काकभुशुण्डी, लोमेश इत्यादि से भी बहुत पहले, विश्वामित्र, वशिष्ठ से भी बहुत पहले की ये परम्पराएँ चल रही है । देवराज इन्द्र भी एक समय इस पीठ के पीठाधीश्वर रहे है, भगवान ब्रह्मा जी स्वयं इस पीठ मेँ आकर ज्ञान देनेँवाले पीठाधीश्वर माने गये, देवी सरस्वती पीठाधीश्वरी के रुप मेँ स्त्रैण भैरवी कही गयी है । माँ काली स्वयं "आदि भैरवी" के रुप मेँ प्रसिद्ध है और उन्हीँ के नाम पर हमारी समस्त साधिकाओँ को "भैरवी" कहा जाता है...स्वयं "महादेव" इसके आदि और प्रथम पीठाधीश्वर है इसलिए आज भी हमारे पीठ के समस्त भैरवोँ को "भैरव" कहा जाता है और केवल एक ही पंथ महाहिन्दुओँ का आदि सिद्ध हमारी पीठ है एक मात्र...जहाँ साधकोँ को "भैरव" और साधिकाओँ को "भैरवी" आदिकाल से कहते आये है, सम्बोधित करते आये है ।

जिनको हनुमान कहकर आप पूजते है..."हनुमंत मुनि" । आपको शायद मालूम ही नहीँ है कि ये कितने बडे ऋषि, कितने बडे मुनि, कितने बडे तपस्वी है...और कितनी विद्याओँ के प्राकट्य को जाननेवाले और कितनी विद्याओँ के प्राकट्य के कारणभूत है स्वयं मेँ । हिमालय के अनेकोँ पंथ "हनुमंत साधना" और "हनुमंतज्ञान कुल" के पीछे चलनेवाले है ।




तुम महाहिन्दू हो जाओ, तुम हिन्दू हो जाओ क्योँकि ये सर्वश्रेष्ठ है, संपूर्ण सृष्टि के हित के लिए है, संपूर्ण धर्मोँ के हित के लिए है, संपूर्ण सम्प्रदायोँ के हित के लिए है । घास, जानवर, नभचर, थलचर, गगन कोई ऐसा तत्त्व नहीँ है जिससे हिन्दू नफरत करता है । कोई जाति, धर्म, सभ्यता नहीँ है जिससे हिन्दू नफरत करता है बस वो तो सबको स्वीकार करता है और आगे ले जाना चाहता है...और भारत मेँ सावधान हो जाए वो दुष्ट जो बार-बार ये कहते है कि हिन्दू धर्म जातिप्रथा को बढावा दे रहा है, जो कहते है कि हिन्दू धर्म तो छोटी जाति के लोगोँ को अधिकार नहीँ देता है ! कौन कहता है ? कौन कह रहा है ऐसा ? क्या तुम मेरे पास आए ? क्या तुमने मुझसे बात की ? क्या तुमने मेरे पास आकार हिन्दू धर्म के ज्ञान को सिखने की "चेष्टा" भी की ? यदि नहीँ की ! तो सावधान रहना ! इस प्रकार की बातोँ को फैलाने से पहले हजार बार सोच लो, क्योँकि दुष्टोँ ! तुम्हारी ये दुष्टता, तुम्हारा ये असत्य अधिक दिनोँ तक चलनेवाला नहीँ है ! अपने इस प्रपञ्च से सावधान रहो !...और जिन लोगोँ को अलग-अलग जाति-सम्प्रदायोँ मेँ बाँटा गया है उन लोगोँ को भी तो होश होनी चाहिए ! कि यदि एक ब्राह्मण नेँ तुम्हे ऐसा कह दिया कि 'हाँ हम तुम्हेँ दीक्षा नहीँ दे सकते !' तो इसका अर्थ क्या हो गया कि सृष्टि से सारे द्वार तुम्हारे लिए बन्द हो गये ? खोज तुम नहीँ करते, रहस्य को तुम नहीँ जानते और गाली देते हो हिन्दू धर्म को ? धिक्कार है तुम पर । तलाश करो, खोजो तो पाओगे कपटी तुम हो, ढोंगी तुम हो, व्यसनी तुम हो, व्यभिचारी तुम हो, हीन भावना से ग्रसित तुम हो, अज्ञानी तुम हो और कहते हो महाहिन्दू धर्म को ! हिमालय को ललकारते हो ! हँसी आती है मुझे ! अपने अज्ञान को कम करो ! सत्य की तलाश मेँ घर से बाहर तो निकलो ! अपने कमरोँ से बाहर निकलते नहीँ हो अपने आधुनिक कर्णपिशाचिनी और न जानेँ लेपटोप और कम्प्यूटर उसी की गुगल की दुनिया मेँ और उसी की दुनिया मेँ सबकुछ सम्मिलित है समाहित है यही सोचते हो... ये तो बहुत ही अधूरी बातेँ और अधूरा ज्ञान है...तो कष्ट उठाओगे नहीँ बैठे रहोगे तो ऐसा ही जान पडेगा की हिन्दू धर्म ऐसा ही है, कभी उसके भीतर जाके देखो तब तुम्हेँ ज्ञान प्राप्त होगा...खैर मैँ अधिक नहीँ कहुँगा... मेरा ये सन्देश विशेषकर उन हिन्दूओँ के लिए है जो इस बात को लेकर बैठे है, कि नहीँ सबकुछ ठीक है, सब ठीक चल रहा है, मेरा घर ठीक है तो सब ठीक है लेकिन मैँ ये जान रहा हुँ कि हिन्दू नष्ट हो रहे है ! हिन्दू समाप्त हो रहे है ! पुनः वक्त आ गया है मजबूती से धर्म-ध्वजा को थामने का ! मजबूती से अपने लिए स्थान चिन्हित करने का ! मजबूती से अपने लिए ऐसा हिमालय और ऐसी सरकार चुनने का कि खुलकर तुम्हेँ हिमालय मेँ जानेँ की आज्ञा दे ! - ईशपुत्र