कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ की अद्भुत साधनों को देख कर कोई भी आश्चर्यचकित रह जाएगा, बाल्यकाल से ही हिमालयों के शिखरों पर उनका महासाम्राज्य रहा, किसी हिम तेंदुए की तरह महायोगी किसी भी पर्वत पर आने जाने में बहुत ही सहज थे, बनों बनों घूमना कोई सरल कार्य नहीं, किन्तु महायोगी जंगली जानबरों की परवाह किये बिना शान से विचरण करते हैं, क्योंकि वो हिमालयों व पर्वतीय बनों के हर राज को जानते हैं, योग को सिद्ध करना या साधारणतय: सीखना भी बहुत जटिल होता है, वैराग्य भाव के बीच ही कठोर अभ्यास करते हुए गुरु के दिशा निर्देश में एक-एक आसन, प्राणायाम, आचार-विचार, व्यवहार को समझाना और सीखना पड़ता है, जो सीखा उसे प्रयोग पर उतारना भी होता है, योग भीतर के ऐसे संसार से परिचय करवाता है कि कोई उसकी व्याख्या तक ठीक से नहीं कर पाता, रात ठीक तीन बजे के करीब उठा जाने वाले महायोगी जी के लिए ये सब सहज ही था, इसलिए नहीं कि वो कोई चमत्कारिक पुरुष जन्म-जात थे, बल्कि इसलिए कि एक तो वो हिमालय के निकट पैदा हुए साथ ही दैवयोग से अत्यंत सिद्ध गुरु प्राप्त हुए, फिर उनकी अपनी अगाध गुरु भक्ति, इन सबने मिल कर महायोगी को योग का ऐसा दिव्य पुरुष बना दिया कि छोटी सी अवशता में ही गुरुजनों की देख-रेख में ध्यान लगाते-लगाते आंशिक समाधि तक पहुँचने लग गए, योग में महायोगी जी की कुशलता देखते ही बनती है, हिमालयों पर प्रमुख आसनों के अतिरिक्त भी महायोगी जी नें लगभग तीन हजार से ज्यादा योगासनों को सीखा, प्रकटयोग यानि की ग्रंथों में लिखा गया योग व गुप्तयोग यानि कि केवल गुरु शिष्य परम्परा के अनुसार दिया जाने वाला व सिखाया जाने वाला योग महायोगी जी को पूर्णतया प्राप्त हुआ, शैवकुल व शाक्तकुल का चक्र आधारित योग, 72 प्राणायामों सहित विविध मुद्राओं, बंधों आदि का ज्ञान लिया, महाऋषि पतंजलि सहित, पञ्चशिखाचार्य, जैगीश्व्याचार्य, वार्षगण्याचार्य सहित कई आदि ऋषियों के कुल का योग ज्ञान पाया,
योग सिद्धि सरलता से प्राप्त नहीं होती, ब्रह्मचर्य आदि के कठोर सिद्धांतों की महायोगी जी को इस लिए भी जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि वो तो तीन चार वर्ष की आयु से गुरु के पास योग का ज्ञान पा रहे थे, योग के यम नियमों सहित ईश्वर प्रणीधान आदि को सीखते हुए काफी समय लग गया लगभग सात वर्ष की आयु पार हो जाने के बाद महायोगी जी को हिमालय में योग का अभ्यास करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ, सबसे पहले महायोगी के योग का गवाह बना गरुडासन पर्वत, जहाँ महायोगी जी नें ध्यान की सीमाओं से पार समाधि की और जाना शुरू कर दिया, गरुडासन पर्वत से मीलों-मीलों तक कोई मानव सभ्यता ही नहीं है, शीतल पहाड़ी क्षेत्र और बिलकुल एकांत पवित्र स्थल है ये पर्वत, योग की विविध विधाएं हैं जैसे हठयोग, राजयोग, नादयोग, भक्तियोग,मन्त्रयोग आदि-आदि, महाकाल शिव प्रणीत इस परम विद्या को सीखा तो जा सकता है पर इसका अभ्यास देख कर ही डर लगने लगता है, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों सहित गुरु गोरक्षनाथ प्रणीत योग का सहारा लेते हए ही महायोगी का योग जीवन आगे गति कर पाया है,
हिमालयों के परम शिखरों जैसे कृष पर्वत, वक्र पर्वत, मुखर पर्वत, नाग पर्वत, इन्द्रासन पर्वत, जोगिनी पर्वत, श्रुति पर्वत आदि पर पर योग का अनुसंधान आम व्यक्ति को भी योगी बना सकता है, फिर महायोगी जी जैसे पुरुष को दिव्य होने में भला कितना समय लगता? लगभग 12 वर्ष की लघु आयु में ही गुरु पद प्राप्त करने वाले महायोगी जी का बचपन इतना लुभावन रहा है कि बालक योगी के पास कई बृद्ध सन्यासी शिष्यों का समूह हो गया, सब बस यही चाहते थे कि उनको महायोगी का साथ मिले ताकि वो भी योग की महा साधना को सीख सकें, प्राण ऊर्जा को प्राप्त हो चुके महायोगी, बहुत से सन्यासियों को बाल्यकाल में ही सूर्य योग आदि सिखा चुके हैं, महायोगी जी के साथ बहुत से सन्यासियों को हिमालय पर विचरण करने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ, यही अच्छी बात भी रही क्योंकि इन लोगों नें महायोगी जी की तस्वीरों को अपनें कैमरों में कैद किया, जो अब हम ढूंढ-ढूंढ कर आपके सामने लाते रहते हैं, हालाँकि अभी तक बहुत पुराने चित्र नहीं मिल पाए हैं, किन्तु कुछ जो उपलब्ध हुए है हम आपको दिखा रहे है................
योग सिद्धि सरलता से प्राप्त नहीं होती, ब्रह्मचर्य आदि के कठोर सिद्धांतों की महायोगी जी को इस लिए भी जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि वो तो तीन चार वर्ष की आयु से गुरु के पास योग का ज्ञान पा रहे थे, योग के यम नियमों सहित ईश्वर प्रणीधान आदि को सीखते हुए काफी समय लग गया लगभग सात वर्ष की आयु पार हो जाने के बाद महायोगी जी को हिमालय में योग का अभ्यास करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ, सबसे पहले महायोगी के योग का गवाह बना गरुडासन पर्वत, जहाँ महायोगी जी नें ध्यान की सीमाओं से पार समाधि की और जाना शुरू कर दिया, गरुडासन पर्वत से मीलों-मीलों तक कोई मानव सभ्यता ही नहीं है, शीतल पहाड़ी क्षेत्र और बिलकुल एकांत पवित्र स्थल है ये पर्वत, योग की विविध विधाएं हैं जैसे हठयोग, राजयोग, नादयोग, भक्तियोग,मन्त्रयोग आदि-आदि, महाकाल शिव प्रणीत इस परम विद्या को सीखा तो जा सकता है पर इसका अभ्यास देख कर ही डर लगने लगता है, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों सहित गुरु गोरक्षनाथ प्रणीत योग का सहारा लेते हए ही महायोगी का योग जीवन आगे गति कर पाया है,
हिमालयों के परम शिखरों जैसे कृष पर्वत, वक्र पर्वत, मुखर पर्वत, नाग पर्वत, इन्द्रासन पर्वत, जोगिनी पर्वत, श्रुति पर्वत आदि पर पर योग का अनुसंधान आम व्यक्ति को भी योगी बना सकता है, फिर महायोगी जी जैसे पुरुष को दिव्य होने में भला कितना समय लगता? लगभग 12 वर्ष की लघु आयु में ही गुरु पद प्राप्त करने वाले महायोगी जी का बचपन इतना लुभावन रहा है कि बालक योगी के पास कई बृद्ध सन्यासी शिष्यों का समूह हो गया, सब बस यही चाहते थे कि उनको महायोगी का साथ मिले ताकि वो भी योग की महा साधना को सीख सकें, प्राण ऊर्जा को प्राप्त हो चुके महायोगी, बहुत से सन्यासियों को बाल्यकाल में ही सूर्य योग आदि सिखा चुके हैं, महायोगी जी के साथ बहुत से सन्यासियों को हिमालय पर विचरण करने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ, यही अच्छी बात भी रही क्योंकि इन लोगों नें महायोगी जी की तस्वीरों को अपनें कैमरों में कैद किया, जो अब हम ढूंढ-ढूंढ कर आपके सामने लाते रहते हैं, हालाँकि अभी तक बहुत पुराने चित्र नहीं मिल पाए हैं, किन्तु कुछ जो उपलब्ध हुए है हम आपको दिखा रहे है................