सृष्टि में स्थित सनातन तत्वों, पदार्थों, बनस्पतियों व पंचतत्वों आदि के गुणों का रोग नाश एवं मानसिक बौधिक वैचारिक स्वास्थ्य लाभ के लिए व आयु बृद्धि के लिए शास्त्र सम्मत विधि का प्रयोग ही किसी को आयुर्वेदाचार्य बना सकता है, कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने ग्रन्थत्रयी (चरक संहिता, काश्यप संहिता, सुश्रुत सहित) का अध्ययन कर दो गुरुओं से आयुर्वेद का दिव्य ज्ञान प्राप्त किया, परम पूज्य बेदमुनि जी से औषधि निर्माण की विधि सीखी, श्री वेद मुनि जी को तरह-तरह की औषधि के निर्माण की सैकड़ों विधियाँ आती थीं, औषधियों के निर्माण के लिए उनका रस बनाना, मिश्रित कर चूर्ण बनाना, अवलेह तैयार करना, या फिर तेल आदि बनाने की विधियों को महायोगी जी नें सीखा, महायोगी सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही औषधि निर्माण के लिए लोहे की डंडा-कुण्डी ले कर औषधियों को कूट-पीस कर तैयार करते, धीमी आंच में दावा तैयार करते, इनसे ही नाडी परीक्षण व रोग ज्ञान महायोगी जी नें सीखा, किन्तु वेद मुनि जी बनों में उगी हुयी जड़ी-बूटियों को नहीं पहचान पाते थे, इसलिए महायोगी जी हिमालय के एक वैद्य शिरोमणि शंकर नाथ जी महाराज के पास गए, उनके साथ रहते हुए और हिमालय विचरण करते हुए महायोगी जी नें अनेक दुर्लभ जडी-बूटियों का ज्ञान प्राप्त किया, गुरुवर शंकर नाथ वैद्य बनों में बहुत ज्यादा समय व्यतीत करते थे, उनके पास एक झोली सदा रहती और उसमें तरह-तरह की औषधियां पड़ी रहती थी, शुरूआती दिनों में महायोगी जी को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि एक जड़ी-बूटी की जैसी शक्ल सूरत होती, उस जैसी ही कई और जड़ी-बूटियाँ भी होती तो बिलकुल मिलती जुलती होने के कारण गलत उखाड़ लाते, उदहारण के लिए गूगल एक साधर जड़ी-बूटी मानी जाती है, किन्तु गूगल की मादा प्रजाति जिसे गूगली कहा जाता है बिलकुल वैसी ही होती है, किन्तु उखाड़ कर जड़ देखने से पता चल जाता है, जब व्यक्ति कुशल हो जाए तो दूर से ही देख कर इनमें अंतर पता कर लेता है, महायोगी जी नें यहीं औषधियों का पूजन उनके मंत्र ज्योतिषानुसार उपाय एवं टोटके और प्रयोग भी सीखे, कुछ अत्यंत दिव्य औषधियों को जाना व देवी-देवताओं की प्रिय औषधियों पर महीनों नजर रखी, उनको छोटे से ले कर उगते हुए और पकते हुए स्वयं देखा, इस दौरान हिमालयों के दिव्य पुशापों से भी महायोगी जी का परिचय हुआ, सीखने की उत्कंठा व छोटी आयु नें जल्द ही इस कार्य में महायोगी जी को माहिर बना दिया, हिमालय के बनों से कई रंग के जहरीले कुकुरमुत्ते ला कर उनका औषधि रूप में प्रयोग करते, इसी दौरान महायोगी जी स्थानीय देवता के गुर यानि माध्यम श्री गिरधारी जी के संपर्क में आये जो कुछ एक औषधियों के चमत्कारी टोटके जानते थे.
निरक्षर होने के बाबजूद उनको बहुत सी औषधियों का ज्ञान था. हिमालयों पर औषधियां देवी देवताओं यक्षों और जोगिनियों की संपत्ति होती हैं. उनकी इच्छा के विरुद्ध जडी-बूटी लाना बेहद मूर्खतापूर्ण है क्योंकि उनका प्रभाव केवल दस प्रतिशत ही रह जाता है, उनके सान्निध्य का महायोगी जी को बहुत लाभ मिला. आयुर्वेद से ले कर तंत्र और पूजा क्रम का अभ्यास जारी रहा.
फोटो- यहाँ गिरधारी जी के साथ महायोगी जी का एक पुराना चित्र है...
फोटो- यहाँ गिरधारी जी के साथ महायोगी जी का एक पुराना चित्र है...